बुधवार, 30 दिसंबर 2009

नए साल का इंतजार है

नए साल का इंतजार है ,
भूख ,गरीबी और भ्रस्टाचार अपार है ,
रुचिका ,जेसिका और आरुषी की भरमार है ,
पंढेर,कोहली और राठोर की सरकार है ,
मृतको की आत्माओ को न्याय की दरकार है ,
न्यायपालिका को नारी न्यायाधीस का इंतजार है ,
गरीबो को थानों में शिकायत दर्ज होने की आस है ,
महगाई के कम होने की दरकार है ,
दिसम्बर की कडकडाती ठण्ड का अहसास है
फिर भी नए साल का इंतजार है . 






रविवार, 27 दिसंबर 2009

ब्यूटी पार्लर


ब्यूटी पार्लर शब्द अपने आप में एक संस्कृति को दिखाता है .यह संस्कृति को ही नहीं बल्कि एक प्रकार जनरेसन गैप को दिखाता है .एक हमारी दादी ,नानी और माँ की जनरेसन दूसरी हमारी .पहली को कभी इसकी जरूरत नहीं हुई पर दूसरी का इसके बगैर गुजारा नहीं है .महीने में कम से कम एक चक्कर तो लगाना ही है क्यूंकि इसके बिना हम खुद को पिछड़ा महसूस करते है .
                                         ब्यूटी पार्लर हमे कही भी गाँवो ,कस्बो और शहरो में दिख सकते है .सस्ते से सस्ते और महगे से महंगे हो सकते है .कही एसी युक्त तो कही बिना पंखे के काम चलाना पड़ता है .पर जरूरत के काम जम के करते है .अब तो दुल्हन बनने से पहले इसके चक्कर लगाने जरुरी है नहीं तो ससुराल वाले पिछड़ा समझेंगे .........................
                                           सहेली की शादी हो रिश्तेदारी के यंहा जाना हो उससे पहले थ्रेदिग,बिलिचिग और वैक्सिंग  जरुरी है .कालेज का फैयरवेळ हो या ऑफिस की पार्टी हो तैयार होने के लिए पार्लर जाना जरुरी है .......................
..............                           ................जो भी हो इस पार्लर कल्चर ने आज महिलाओ की आजादी के नए मानदंड बना दिए है .इसने उनके अंदर एक नया आत्मविश्वास पैदा किया है जो जरुरी तो नहीं लेकिन कुछ बुरा भी नहीं है .......        

शनिवार, 26 दिसंबर 2009

छोटा प्रदेश बनाम विकास

आज कल देश में प्रदेशो के विभाजन की चर्चा जोरो पर है .कुछ दिनों पहले तेलेगाना को एक नया प्रदेश बनाने की बात ने जो तूल पकड़ा वह थमने का नाम नहीं ले रहा है .आन्ध्र प्रदेश की देखा देखी अन्य राज्य भी नए प्रदेश की मांग कर रहे है .उत्तर प्रदेश को जंहा तीन भागो हरित प्रदेश ,बुंदेलखंड और पूर्वांचल में विभाजित करने की मांग उठ रही है वही बिहारवासी मिथानांचल और उड़ीसा निवासी कोसल प्रदेश की बात पर अड़े है .
प्रदेशो के विभाजन का यह शोर क्या विकास हेतु है ,क्या विकास बड़े आकार में समभ्व नहीं है ,देश में अनेको राज्य बड़े आकार के बावजूद विकास के पैमाने पर खरे उतर रहे है .वर्षो पहले बड़े प्रयत्नों के बाद देश को संगठित किया जा सका है ,इस प्रकार के आन्दोलन उसे गृहयुद्ध में झोक सकते है .
विभाजन से विकास की राह  सही नहीं दिखाई पड़ती क्यूकि जितना पैसा हम नए राजधानियों के विकास में लगायेगे उतने में हम उस प्रदेश के विकास के लिए संसाधन जुटा सकते है .  यदि पिछड़े इलाको को उनके भू आकृति के अनुसार योजना बनाकर उसे इमानदारी से लागू करे तो आधी परेशानी वही ख़त्म हो जाएगी .सरकार यदि उस इलाके को धन दे कर परिवहन सुविधाये बडाये तो परेशानिया कम हो सकती है .

रविवार, 9 अगस्त 2009

रविवार

रविवार का मतलब सन्डे ,सन्डे यानि छुट्टी ,छुट्टी उस काम की जो एक वर्ग विशेष करता है ,वह काम जो जनता से जनता को और जनता के लिए किया जाता है ,क्यूंकि यंहा लोकतंत्र है ,लोकतंत्र जो राजनीतिज्ञओ के बेठ्को में ,संसद
के गलियारों में ,नेताओ की रैलिओं में ,नेताओ के डिजैनेर धोती कुर्तो में ,हर पांच साल बाद होने वाले आम चुनाव और विधानसभा चुनाव में दिखाई पड़ता है ,यह लोकतंत्र क्या देश के उन करोडो भूखे नगे गरीब लोगो को समझ आ सकता है जिनका जीवन दर्शन ही रोटी के इर्द गिर्द दिखाई पड़ता है ,जिन्हें अगर एक पहर रोटी मिलती है तो दुसरे पहर की कोई गारंटी नही होती ,उनके लिए और उन गरीब मजदूरों के जो थोड़े से पैसो के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करते है ,उनको इस के कायदे कानूनों से भला क्या सरोकार ,उन्हें उस सन्डे की छुटी से क्या जो हम मनाते है ,हमारा संडे तो चाय की चुस्कियों के साथ किसी बडे अख़बार का रविवारीय विशेषांक पड़ते हुए शुरू करते है ,लेकिन उनका क्या जो एक वक्क्त की रोटी के तरस रहे है ,उनके उस भूख जो सडको ,चौराहों के इर्द ग्रिद दिखाई पड़ती है

शनिवार, 8 अगस्त 2009

आबरू

एक सुबह आबरू को सड़क पर पड़े देखा ,
देखा उसे पीठ के लेटे साँस रहित मरी सी
मरी सी पर जीवीत थी आबरू बनकर
आबरू जो लुट पीट चुक थी द्रीदों के हाथो
उन हाथो से जो अपने घर की आबरू को बचाते
बचा के रखते है उसे घरो में बैठको में सजाते
सजा के रखते उसे जो गरीबो असहायों की नही
नही है महानगरो में अकेली लडकी की
उस लडकी की जो देर शाम नीक्लने डरती है
डरती है वह उस घटना जो मार न दे उसकी आबरू को

वो परी

जनवरी की सुबह तक़रीबन ७ बजे वो मुझे बनारस से इलाहाबाद की पिसेंजेर ट्रेन में देखाई दी ;उस समय तापमान करीब आठ से दस डिगरी के बीच में था मैंने माँ की डांट के कारण ख़ुद को ठीक से शाल से लपेट रखा था ; वो कही चडी पर एस्टेसन मुझे याद नही ,तक़रीबन चार साल की होगी छोटे बीखरे कंधे तक बाल उनमे कुछ लटे उसके सवाले कोमल चहरे पर पड़ रही थी जीन्हें वो अपने नन्हे हाथो से समेट रही थी ,नगे पाव बाजुओ से कटी घुटने तक लाल फ्राक पहने वो मुझे अफ्रीकन माडल सी लग रही थी ,अनायास ही नजरे उसकी तरफ़ ही जा रही थी ऐसा लग रहा था मानो मै उसे कीतने सालो से जानती हु पर उसकी नज़रे भी मुझे देख रही थी पर थोडी डरी हुई सी; वो अकेली नही थी उसके साथ उसका पुरा परीवार था माँ बाप और छोटा भाई जीसे उसके बाबू ने गोद में उठा लीया था ,और माँ जीस्के हाथ में पाच रुपये का पार्लेजी बीस्कुट था वो अपने बेटे बहुत दुलार रही थी , पर वो अपनों के बीच भी अलग थी ,न ही बाबू और न ही माँ को उसकी परवाह थी वो तो ट्रेन के ठंठे फर्श पर बैठ हसरत भरी नजरो से देख रही थी की कब माँ उसे भी बीस्कुट का एक टुकडा देकर गोद में लेगी ,वो तो अपनों के बीच भी अनाथ थी ,तो उनका जो सच में अनाथ है मै उसे बीस्कुट और गरम कपडे दे सकती हु पर उस प्यार उस दुलार का क्या जो उसे उसकी जननी से चाहीए इसे तो उसके माँ और बाबू ही देगे ,

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

आज की नारी

नारी जो भगवान की सबसे अच्छी रचना है ,
उसके विविध रूपों का चिन्तन एक सुखद अनुभव है ,
वह कही सीता कही सावित्री कही सोनिया तो कही सानिया है ,
अपाला मैत्रेयी राखी मीरा ममता और माया रूप भी लुभाते है ,
कभी दादी नानी चाची काकी मामी बुआ और माँ बनकर प्रेम बरसाती है ,
वह कभी लोपा कभी लक्ष्मी बाई कभी लोलिता तो कभी लोपेज़ है ,
कभी बहन कभी पत्नी कभी क्लास्स्मेट कभी गर्लफ्रेंड बनकर हर पल साथ निभाती है
अब नारी केवल श्रदा नही बल्कि समाज की नस नस में बसी है