शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

प्रदुषण और बढती कारे



माँ की भूमिका

माँ की भूमिका तो सैदव ही महत्वपूर्ण रही है परन्तु अंधाधुध विकास एवं ग्लोबलाईजेसन की प्रकिया के बाद समाज का ढांचाबदला है.उसके बाद परिवारों का बिखरना,परिवेश में परिवर्तन व्  मनुष्य   के आत्मकेन्द्रित होने से मानव के जीवन में माँ कीभूमिका निःसंदेह पहले से बढ़ी है.आज से कुछ समय पहले जब समाज में संयुक्त परिवार वर्तमान की अपेक्षा अधिक होते थेतथा मनुष्य वर्तमान की भांति स्वकेंद्रित नहीं था तब एक बच्चे के चारो तरफ अनेको रिश्ते होते थे.उसे ममता, स्नेह और दुलार न केवल माँ से ही नहीं बल्कि अन्य रिश्तो जैसे बुआ,नानी,चाची,दादी,मामी से भी मिलता था.परंतु आज जब संयुक्तपरिवार टूटे रहे है तो माँ की भूमिका और उसके कर्तव्य भी पहले से अधिक बढ़ गए है क्यूकि परिवार की अकेली संतान केलिए कभी वह मित्र, कभी बुआ,कभी चाची और कभी दादी बनकर लोरिया एवं  कहानिया सुनाती थी.परन्तु जब बच्चा अपनीदादी और नानी के बुजुर्ग हाथो से प्यार, दुलार नहीं पाता तो उसे ये सब कुछ माँ से ही मिलता है.इसलिए माँ की भूमिका निःसंदेहमहत्वपूर्ण हो गई है.आज के परिवेश में यदि माँ का सहयोगात्मक रवैया न हो तो बच्चे का सम्पूर्ण विकास मुश्किल है.यही नहींकिशोरअवस्था में उसके बढते कदमो के साथ उसकी निगरानी भी केवल माँ ही कर सकती है

रविवार, 5 सितंबर 2010

आज की युवा पीढ़ी से देश को कितनी आशाए ?

जनसंख्या के उस भाग को जो लगभग दस से चौबीस बरस के बीच है युवा की संज्ञा दी जाती है.हमारे देश की जनसंख्या का तकरीबन तीस फीसदी हिस्सा युवा है.भारत के लिए यह एक सकरात्मक पक्ष है,क्यूकि  जहा जापान, फ़्रांस और आस्ट्रेलिया जैसे देश अपनी बुजुर्ग होती आबादी से परेशान है वही भारत अपनी युवा आबादी के बल बूते उनसे अनेक मामलो में बढत ले सकता है.
                              

                   युवा देश की सम्पूर्ण जनसंख्या का महत्वपूर्ण अंग है.देश की आर्थिक,सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितिया इनसे प्रभावित होती है. ये युवा ही है जो देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जा सकती है.युवा के रूप हमारे देश के पास एक ऐसा संसाधन है जिसके उचित प्रयोग से अर्थव्यवस्था में क्रान्तिकारी बदलाव किए जा सकते है.
                              
       युवा न केवल देश की अर्थव्यवस्था को बल्कि सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों  को भी प्रभावित करता है. आज देश का युवा अपने प्रयासों द्वारा अनेक सामाजिक समस्याओ को समाप्त कर सकता है.सुशिक्षित एवं स्वस्थ युवा देश की जड़ो में बैठी समस्याओ को आसानी से ख़त्म कर देगा. जाति प्रथा, दहेज जैसे
बुराइया उनके प्रयास के बिना समाप्त नहीं हो सकती है. साथ ही राजनीति में उनकी सहभागिता न केवल देश की राजनीतिक
व्यवस्था को सुदृढ़ करेगी बल्कि नए कीर्तिमान भी बनाएगी.
                              
        इसके अलावा युवा पीढ़ी की कुछ समस्याए भी जो विकास की मुख्य धारा से कटे होने के कारण उपजी है जैसे नक्सलवाद ,आतंकवाद इत्यादि.इसलिए समाज एवं सरकार का कर्तव्य है की वह युवाओ का  सही मार्गदर्शन करे. सही मार्गदर्शन कर उन्हें शिक्षा का पर्याप्त अवसर एवं व्यक्तिगत विकास के लिए सुविधाए मुहैया कराए.क्यूकि देश की आशाए इन्ही पर टिकी है. यदि युवा सही राह पर चलेगे तो देश की उन्नति और प्रगति की राहे आसान होगी

रविवार, 29 अगस्त 2010

विकास और असंतोष

 पिछले दिनों दिल्ली में किसानो ने अपनी जमीनों के अधिग्रहण को लेकर प्रदर्शन किया यह खबर पूरे मीडिया में छाई हुई थी .किसान अपनी जमीन पर आपने अधिकार खोने से नाराज है दिल्ली में हुई किसान रैली इसका उदाहरण  है .........
                   देश में विकास के नाम पर बन रही सड़के ,बहुमंजिली इमारतो और सेज इत्यादि जैसे बड़ी परियोजनाओ के दौरान किसानो की जमीने बड़े पैमाने पर अधिग्रहित की जाती है .इस अधिग्रहण से विकास की राह तो आसान हो जाती है या यूँ कहे कि हमारे चमचमाते इंडिया कि तस्वीर बनी रहती है लेकिन उन गरीब किसानो का क्या जिनकी जमीने कम दामो पर खरीद ली जाती है .वे जमीने जो उनके जीने का आधार होती है या यूँ कहे कि उनका अस्तित्व  ही उन जमीनों पर निर्भर रहता है .उनके पास कही दूर दराज के गाँवो में जाकर बसने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं बचता .
                                                  विस्थापित गरीब किसान के पास से यदि मिले हुए पैसे खर्च हो जाए तो उसके पास मजदूरी के अलावा कोई उपाय नहीं बचता .इस स्थिति में वह अपने परिवार सहित सडक पर आ जाता है .              
                                                           इसके अतिरिक्त देश में जिस तरह खाद्य संकट कि समस्या आ खड़ी हुई है इस प्रकार के भूमि अधिग्रहण से वह और भी विकट रूप धारण करेगी .बढती ज्संख्या और अन्न उत्पादन हेतु भूमि का अभाव देश को भुखमरी के कगार पर ला कर खड़ा कर देगा .इसलिए यह लड़ाई न केवल किसानो कि है बल्कि खाद्य  सुरक्षा एवं पर्यावरण कि रक्षा का अभियान है .
                                   ये समस्या न केवल किसानो की है बल्कि आदिवासी भी इस समस्या से ग्रसित है .आदिवासी बहुल इलाको में आदिवासियों की जमीनों को सस्ते दामो पर हथिया कर उन्हें जंगलो के अंदर जाने पर मजबूर किया जाता है जिससे न केवल आदिवासी की समस्या बढती है बल्कि देश में पर्यावरण को भी क्षति पहुचती है .

बुधवार, 25 अगस्त 2010

सावन की बहार और तीज का त्यौहार

'रिमझिम रिमझिम बरसे बदरी 'रेडियो पर इस गीत को सुनकर और खिड़की से बाहर की रिमझिम फुहारों को देख सावन के आने का अहसास होता है ......
                              सावन ज्येष्ठ की तपती गर्मी और आषाढ़ की उमस के बाद हल्की ठंडी बयार लेकर आता है जो सभी के लिए सुखद अहसास होता है .सावन की ठंडक न केवल तन को राहत देती है बल्कि मन को भी शांत करती है ....सावन के आते ही जब मौसम खुशनुमा होता है तो हमारे जीवन में अनेक तीज त्यौहार भी आते है जिनमे स्त्री और पुरुष दोनों भाग लेते है .....
                   सावन का महीना महिलाओ के लिए खास होता है क्यूकि इस महीने विवाहित महिलाये आपने मायके आती है .......मायके आकर वह तरह तरह के उत्सवो में भाग लेती है ......उत्तर भारत में सावन के महीने में तीज ,नागपंचमी एवं सावन के सोमवार जैसे उत्सव उत्साह पूर्वक मनाये जाते है 
                               तीज का त्यौहार महिलाओ के  लिए खास होता है .इसका न केवल जलवायाविक महत्व  होता है बल्कि यह धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टी से भी विशेष महत्व रखता है .तीज का पर्व भगवान  शिव पार्वती के श्रद्धा के प्रति समर्पित है .यह पर्व पत्नियों द्वारा पतियों के प्रति बलिदान को प्रदर्शित करता है .
                    पूरे देश में तीज का त्यौहार मनाया जाता है .हरियाली तीज ,कजरारी तीज एवं हरितालिका तीज तीन रूपों में मनाई जाती है .सावन के शुक्ल पक्ष में हरियाली तीज मनाई जाती है .इस अवसर पर चाँद की पूजा दूध, दही और फूलो से की जाती है 
             इसके अतिरिक्त कजरारी तीज सावन के कृष्ण पक्ष की तृतीया को यह त्यौहार मनाया जाता है .इस अवसर पर महिलाये नीम की पूजा कर नाचती एवं गाती है .हरितालिका तीज भादो में प्रथम पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है .इस अवसर पर महिलाये 'निर्जला व्रत 'रखती है .यह व्रत महिलाये आपने पति की दीर्घायु के लिए रखती है .यह व्रत न केवल विवाहित महिलाये बल्कि अविवाहित महिलाये भी रखती है .इस अवसर पर उनके ससुराल से तरह तरह के तोहफे आते है ....जिनका वो आनंद उठाती है .......     

सोमवार, 31 मई 2010

रास्ते

रास्ते ,ये रास्ते 
ये अंतहीन रास्ते ......
जिन पर निकल पड़ी मै 
बिना किसी के साथ के ,
वो साथ ही क्या साथ है .........
जो राह में ही छोड़ दे ,
उस साथ को  मै छोड़ दूँ 
जो साथ मेरा छोड़ दे ........

रविवार, 30 मई 2010

सपने

मेरे  सपने 
काली  अँधेरी रातो में,
सबके सोने पर 
जागते सपने 
सपने ,पानी ही पानी है .........
पहाड़ और ऊंचाईयां है 
सीढिया है ....
मै उनमे घूम रही हूँ ,खो गई हूँ .........
सबसे दूर ,सब रिश्तो से दूर 
जैसे अपने अस्तित्व के लिए  लड़ रही हूँ .......
सपने ,डराते सपने ,रुलाते सपने 
रोमांचित करते ,अहसास दिलाते ,
गुदगुदाते सपने 
उस अहसास के सपने जो  
बरसों नहीं भूलते ,
हसीन सपने ,सपनों में 
कानो में गूंजती है ,
 आवाजे ,वे आवाजे न जाने 
कीसकी है ,इश्वर या अंतरात्मा 
न जाने क्या ?
जो भविश्य को अपने में समाये 
कहते है ,जिनसे मै डरती हूँ ..........
कि   अगर वह सच हुए तो ........
मै बिखर जाउंगी  ,टूट जाउंगी 
लेकिन होगा तो वही जो लिखा है,
क्या  कहूँ बस ऐसे ही है मेरे सपने .............

बुधवार, 12 मई 2010

हमारी बात - एक कविता


साधो सुनो बात हमारी ,
बात उस तंत्र की जो है लोकतंत्र ,
लोगो का तंत्र जंहा लोग हँ ऊँची पहुँच के ,
बड़े रसूख वाले जिन्हें परवाह नहीं पिछडो की ,
शोषितों की परवाह नहीं ,
जो नित नए कारनामे करते है ,
और अपने ऊँची पहुँच से छिपाते है ,
मंदिरों जा अपना पाप धोते है ,
और साफ सुथरे दिखाई देते है ,
तो साधो उनकी की भी बात रखते है ,
कहते है उनके बात ,
साधो सुनो हमारी बात

रविवार, 9 मई 2010

मदर्स डे

आज मदर्स डे है .चारो तरफ गहमागहमी है बाजार में तरह तरह के तोहफों से दुकाने सजी है .लोग इस अवसर को अपनी इच्छा अनुसार मना भी रहे है .........खैर इसके  इतिहास तथा इसे मनाने के औचित्य तथा अनौचित्य पर न जाकर देश में माँ की दशा पर गौर करे तो ज्यादा बेहतर होगा ..............
                                        आजादी के लगभग साठ बरसों बाद भी भारत में स्वास्थ्य सुविधाओ की दशा ठीक नहीं है यह बात छुपी नहीं है .शहर हो या गाँव अस्पतालों के नाम पर कुछ ही जगहे मिलेगी .और उनमे भी हर मरीज अपनी बारी का इंतजार करता हुआ असहाय दिखाई देगा.इसके अलावा जब बात हम अपनी  आधी आबादी की करते है तो उसे ये भी नसीब नहीं होता.
क्यूंकि वह तो औरत है और उसका धर्म है दर्द सहना ,पिसना और चुप रहना.
                                                           इन्ही कारणों से भारत में मातृव मृत्यु दर कम नहीं हो रही है .देश में प्रसव के दौरान महिलाओ की मृत्यु दर काफी ऊँची है .भारत में माता मृत्यु अनुपात १००,००० प्रसव पर २५४ है .केरल में यह ९५ है तो असम में ४८० है.यह इस महाद्वीप का सबसे ख़राब अनुपात है, बांग्लादेश व् पाकिस्तान से भी ख़राब. इसे और आसानी से समझना हो तो ऐसे जान लीजिये कि भारत में हर साल ६५,०००० महिलाये प्रसव के दौरान दम तोडती है .यानि हर आठवे मिनट में बच्चे को जन्म देते समय एक महिला की मौत हो जाती है .
                                                                             इनमे से ५०% मौते रक्त स्राव और संक्रमण के कारण  होती है . अफ़सोस जंक तथ्य यह है कि भारत में आधे प्रसवो में कोई स्वास्थ्यकर्मी मौजूद नहीं होता. ये तथ्य औरत का जीवन कितने संकट में है इसकी भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है .माँ की मौत के बाद शिशु के मरने सम्भावना बढ़ जाती है .और अगर शिशु बच भी जाए तो वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्य्थ हो उसकी सम्भावनाये बहुत कम होती है .
                                                                     प्रसव के दौरान किसी स्त्री की मौत न केवल परिवार के विपदा होती है बल्कि यह एक सामाजिक समस्या बन उभरती है .माँ की मौत से पिता के ऊपर जिम्मेदारी बढती है और इससे  पूरा परिवार प्रभावित हो समाज पर भी असर डालता है .
                                                       यह तो बात हुई प्रसव के दौरान काल के गल में जाने वाली माओ की. अब उनकी बात करते है जो अपनी कोख किराये पर देती है जी हाँ यहाँ बात हो रही है सैरोगेट मदर की .वह माँ जो अपने बच्चे को नौ महीने
पेट में रख तमाम तकलीफे उठाती है और फिर अपने कलेजे के टुकड़े को किसी और को सौपती है न जाने इसके पीछे उसकी क्या मज़बूरी होती है .यहा उसका दैहिक और मानसिक दोनों शोषण होता है .लेकिन हमारे देश इसके लिए उचित कानून का अभाव है जो आवश्यकता पड़ने पर उसे इंसाफ दिला सके ....................
                                                        तो क्या तथाकथित मदर्स डे पर इन अभागन के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है ?क्या उन्हें उनका अधिकार नहीं मिलना चाहिए ? इस अवसर इनकी बात हो तभी देश का हर बचा खुश हो मदर्स डे मना पायेगा ..............

शनिवार, 8 मई 2010

मेरा मन

मेरा मन
वह मन जो भीतर है मेरे,
सोचती हूँ , मै नहीं हूँ ........
केवल मेरा मन है ........
वही मन जो कहता है मुझसे,
बोलता है मन मेरा
कर वही जो मै कहता हूँ,
आह ! काश मै कर पाती,
सुन पाती उसकी इच्छाओ को,
कैसे समझाउं उसे ........
मन,.... मेरा मन
दुखी,उदास ,हतास और निराश है .
क्या करूँ ?
उसे कैसे मनाऊँ ?
मनाऊँ भी तो कैसे ?
मेरे तर्कों को नहीं सुनता है ,
कहता है ! तुम यंत्र मत बनो ....
उसे कैसे समझाऊँ ?
यह दुनिया तो एक मशीन है ,
और मशीनी भाषा समझती है,
कैसे समझेगी ?मेरे मनोभावों को .....
मेरा मन शांत हो जाता है ,
यह सुनकर .......
और मै पहले से भी ज्यादा बेचैन,
बेचैन और निरुतरित,
क्यूंकि फिर मेरा मन उदास है !

(फोटो http://fineartamerica.com/featured/nostalgia-mirjana-gotovac.html से साभार )

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

बाजार

चमचमाती दुकाने
ग्राहकों को लुभाते दुकानदार
चौतरफा रोशनी ही रोशनी है ......
जगमग सड़के ......
दुकाने जो बेच रही है,
जीते जागते इन्सान को ,
इन्सान, हाड़ मांस का मानव
उसका अपना खून,
दुकानदार है लड्केवाला ,
और खरीदार है लडकीवाला,
लड़की का पिता बाजार में सोचता है .......
अपनी हैसियत के बारे में ...
हैसियत उसकी कम है तो,
वह कैसे ? कैसे ?अपनी लड़की
के लिए खुशिया खरीदेगा !
लड़की जो देख रही है सब कुछ ,
कुछ कह नहीं सकती ,
पिता की मजबूरी को देख,
आँखों में आंसू आते है !
रोती है अपने लड़की होने पर ,
लेकिन क्या करे ?
उसके हाथ बंधे है पिता की इज्जत से,
पिता,समाज में क्या कहेगे ?
माँ की आशाए,
उसे विदा करने की,
उसका क्या होगा ?
इसलिए ये बाजार लगा ही रहेगा ......

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

छत्तीसगढ़ में नरसंहार

छतीसगढ़ के दंतेवाडा में नक्सलियों द्वारा ७६ जवानो की हत्या कर दी गई .छत्तीसगढ़ में हुआ यह अब तक का सबसे बड़ा नक्सली  हमला है .ये ७६ जवान संख्या मात्र नहीं है बल्कि यह जीते जागते इन्सान थे जो नक्सलियों का शिकार हुए ..उन जवानो के परिजनों की दशा का अनुमान लगाया जा सकता है .ये सी आर प़ी ऍफ़ के जवान अपनी रोजी रोटी के लिए और देश की रक्षा के लिए किसी भी तरह का जोखिम उठाने को तैयार हो जाते है .नक्सलियों द्वारा किया यह हमला आपरेशन ग्रीन हंट के विरोध में था.
                          नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा को इसलिए चुना क्यूंकि वंहा की दुर्गम भोगौलिक परिस्थितिया उनके लिए लाभदायक थी .नक्सली उस क्षेत्र के चप्पे चप्पे से वाकिफ होते है .इसके आलावा दंतेवाडा तीन ओर से उड़ीसा आंध्र प्रदेश और महारास्ट्र से घिरा हुआ है जिससे नक्सली हमले के बाद भागने में सफल होंगे .इसके विपरीत जवानो को उन जंगलो के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती है .
                                         इसे नक्सलियों का प्रतिवाद कहा जा सकता है .उन्होंने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को चुनौती है भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के यह एक बड़ी घटना है .सरकार को इन घटनाओ से सबक लेते हुए आगे उचित रणनीति बनाकर इस समस्या को हल करना चाहिए .दंतेवाडा की इस घटना ने यह साबित कर दिया है इस समस्या को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है .
                                        दंतेवाडा की घटना ने भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र की असफलता और इस मसले पर केंद्र और सरकार के बीच तालमेल के अभाव को सामने ला दिया है .यदि इसे देश में एक सामाजिक समस्या के रूप देखा जाता है तो इसका दूसरा पहलू यह है की राज्य सरकारों का ढुलमुल रवैया भी इसके लिए जिम्मेदार है .कई बार राज्य के बड़े नेता इन नक्सलियों के साथ सहानुभूति पूर्ण बर्ताव करते है बदले में उन्हें वोट मिलते है .राज्यों के बीच सहयोग के अभाव में अभाव में नक्सली एक राज्य में वारदात को अंजाम दे दुसरे राज्य में पलायन कर जाते है जिससे उनके खिलाफ कारवाई करना मुश्किल हो जाता है.
अब वक्त आ गया है सरकार एक ऐसे योजना बनाए जिससे इस समस्या को खत्म किया जा सके .

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

बूढ़ा पेड़

बूढ़ा पेड़
नीम का पेड़
खड़ा है बरसों से
अडिग, बेफिक्र
बस देखता है सबको
गिलहरियों को जो
दौड़ रही है न जाने क्यों ?
शायद फितरत है उनकी
चिड़िया जो मगन है खुद में,
उन्हें परवाह नहीं इस बूढ़े की
पेड़ तो बस खड़ा है चुपचाप
वह बच्चो को बढते,
उसे जवान होते ,
माँ की ममता और
जीवन संगिनी के साथ रिश्तो को बनाते
उन्हें सम्भालते देख रहा है,
सोचता है कभी इस बूढ़े पेड़
की ओर कोई देखे !
कोई देखे जिससे वह
कह सके अपने मन की बात,
लेकिन कौन सुनेगा उसके मन की बात ?
इस भागमभाग जिन्दगी में
इतना समय है किसके पास ?

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

आम आदमी

सरकार की योजनाओ का
विषय है आम आदमी
अर्थशास्त्रियो के अध्ययन का
विषय है आम आदमी
बजट में चर्चा का विषय
है आम आदमी
धरनों,रैलियों और प्रदर्शनों में
जूझता है आम आदमी
नेताओ के भाषण का सार
है आम आदमी
मीडिया में विवाद का केंद्र बिंदु
है आम आदमी
महानगरो,शहरो,कस्बो में
है आम आदमी
चारो तरफ है आम आदमी
लेकिन आम आदमी है कौन ?
कैसा है वो ?
कोई चेहरा,कोई शक्ल,कोई आवाज
 पता नहीं ?
शायद वह जो खास से अलग है
खोज रही हूँ मै उसे .........
अंधाधुंध आधुनिकता और वैश्वीकरण
  के दौर में ......
जो शायद किसी मोड़ पर मिल जाए
वह आम आदमी .........

मंगलवार, 23 मार्च 2010

उदासी

मै  उदास  हूँ,
अकेली हूँ, बिल्कुल अकेली
कोई नहीं है मेरे पास
सोचती हूँ मै ही बस अकेली
नहीं,शायद नहीं
यह जो दोपहर है, तपती दोपहर
वह भी तो है अकेली,
बिल्कुल मेरी तरह.......
कितनी ही समानताये है
मुझमे और दोपहर में
दोनों ही जल रही है........
तप रही है .......
मै भी तो जल रही हूँ
अपनी इच्छाओ और भावनाओ में ......
इच्छाए जो जीने नहीं देती
भावनाए जो अपने होने का अहसास कराती है ,
दोपहर को है शाम का इंतजार
मुझे भी तो है इंतजार
उस क्षण का जब
कोई हलचल नहीं होगी ,
मै शांत,बिल्कुल शांत ......
भावनारहित, इच्छारहित,
शायद मुक्त,बिल्कुल मुक्त
कोई बंधन नहीं है .......
उस क्षण की प्रतीक्षा में ......

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

नक्सलवाद और देश

पिछले तीन सालो में आतंकवादी वारदातों में जंहा लगभग साढ़े चार सौ लोग मारे गए है वही नक्सलियों ने तीन साल में ढाई हजार लोगो की हत्या की.पिछले एक दशक के आंकड़ो पर गौर करे तो एक दो वर्षो को छोड़ पिछले वर्ष की अपेक्षा  ह्त्याओ में वृद्धि हुई है.इसकी भयावह तस्वीर निर्दोष लोगो की हत्या एवं रास्ट्रीय सम्पति को क्षति के रूप में सामने आती है.
                                                       पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी गाँव से १९६७ में चारू मजुमदार ने हिंसा की शुरुआत की.नक्सलवादियो का दर्शन कहता है कि वे पूंजीवादी सरकार की बाजारवादी व् समाज में गैर बराबरी बढाने वाली नीतियों के विरोध में  और गरीबो के हित में लड़ रहे है.इसमें सच का प्रतिशत कितना है यह एक बड़ी विडम्बना है .
                                     १९७० और १९८० के दशक में नक्सलवाद का प्रभाव पहले केवल बंगाल में लेकिन अब पूर्व के साथ दक्षिण के राज्यों में भी खासा असर है.फ़िलहाल देश के २० राज्यों के २२० जिलो में सक्रिय है .देश के कुल क्षेत्रफल के ४०%हिस्सों में नक्सलवाद की मौजूदगी है.९२००० वर्ग किमी के विशेष क्षेत्र जिसे वे रेड कारीडोर कहते है में सक्रियता ज्यादा है.पश्चिम बंगाल,उड़ीसा ,छतीसगढ़ ,आंध्रप्रदेश ,महारास्ट्र,झारखंड ,बिहार और उत्तर प्रदेश राज्य नक्सलियों से ज्यादा प्रभावित है. रा के मुताबिक नक्सलियों की टीम में २०,००० सशत्र कैडर और ५०,००० नियमित कैडर है.
                                                                देश के कुछ हिस्सों में जैसे झारखंड में नक्सली समस्या भयावह है.राज्य के कई इलाको में नक्सलियों की हुकुमत चलती है.उनके एक आह्वान पर पूरा राज्य ठप हो जाता है.वही बिहार में कही कोई बड़ा नक्सली नेता पकड़ा जाता है तो कई रेल मार्गो पर पटरियो पर विस्फोट हो जाते है .
                                                          नक्सल प्रभावित क्षेत्रो में स्थिति गंभीर है और देश की आंतरिक सुरक्षा हेतु यह एक बड़ा खतरा है.जनता बेहद डरी है और नक्सली बेख़ौफ़ होकर कारनामे कर रहे है .इनके पास न सिर्फ अत्याधुनिक हथियारों का बड़ा  जखीरा है बल्कि लोगो को व्यवस्था को  कमजोरियों के खिलाफ लामबंद करने और सरकार की नीतियों को
परास्त करने की कुंजी भी इनके हाथ में है .
                                             नक्सलवाद की समस्या को रोकने के लिए मानिटरिंग जारी है पुलिस क्षेत्राधिकारियो की देखरेख में कैम्प भी लगाये जा रहे है .जनसहयोग भी लिया जा रहा है.राज्यों द्वारा पडोसी राज्यों से भी ख़ुफ़िया जानकारियों का आदान प्रदान किया जा रहा है जिससे हालत से निपटा जा सके.पुलिस सुरक्षात्मक और विकासात्मक सिद्धांतो पर कार्य कर रही है .
                                      देश की आन्तरिक सुरक्षा को खतरा पहुचाने वाली इस समस्या के निदान हेतु व्यापक रणनीति बनाने की आवश्यकता है .इसमें कार्यरत उग्रवादी तत्वों के साथ सख्ती से पेश आने की आवश्यकता है तथा स्थानीय स्तर पर विकास कार्य क्रम लागू कर क्षेत्रीय लोगो का विश्वास प्राप्त करने की आवश्यकता है

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

वो औरते

 औरते,वो औरते
चटक रंगों की तरह
 रंग बिरंगी
जिन्हें देख मन सोचता है ........
क्या अंतर है ?मुझमे और उनमे
मै भी तो उन्ही की तरह ही एक स्त्री हूँ..........
उन्ही की तरह बन्धनों से जकड़ी
और परेशानीयों से घिरी हुई  ........
वो मेरी तरह ही हाड़ मांस की बनी है,
मेरी ही तरह दर्द को झेलती है
पर उन्हें लोग गन्दी औरते क्यों कहते है?
लोग, तथा कथित लोग ,
सभ्य समाज का मुखौटा पहने हुए,
जो दिन में उन्हें गन्दी औरतो के
विशेषण से विभूषित करते है .......
और रात उनकी चरणों में खुद को
समर्पित करते है .......
शायद यही समाज है .......
इसे समाज कहते है
दोहरे चेहरे का समाज .............

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

बैंगन पर बवाल

अब तक रसोई में रहने वाला बैंगन अचानक चर्चा में आ गया है.यह चर्चा सत्ता के गलियारे से लेकर पर्यावरणविदो एवं वैज्ञानिको के बीच भी हो रही है .........यह चर्चा बी टी बैगन को लेकर हो रही है ..........
                                                       बी टी बैगन जेनेटिकली मोडीफाइड खाद्य फसल है.जेनिटिकली मोडीफाइड फसले यानि ऐसी फसले जिनके डी एन ए में मामूली से परिवर्तन कर के उनमे मनचाहा परिवर्तन और आकार प्रकार में गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है. जेनेटिकली मोडीफाइड फसलो से जुड़ा मामला १९९६ में पहली बार आया था.
                                                            बी टी बैगन से जुड़े मुद्दे पर बवाल इसलिए हुआ है क्यूकि बी टी बैगन को खाने से मनुष्य पर क्या असर पड़ेगा? पर्यावरण पुरोधाओ को डर है कि निषेचित जीन अपने कार्य से इतर कारवाई कर सकता है जिस कारण अन्य पोधो को भी नुकसान पहुचने का खतरा बना हुआ है. वैसे भी हमारे पर्यावरण को विज्ञानं और तकनीकी ने किस क्षति पहुचाई है यह बात किसी से छिपी नहीं है .........
                                                              वैसे तो परम्परागत बैगन के बाजार से जाने पर डायबिटीज टाइप २ पर लगाम
अवश्य लगेगी  लेकिन  इसकी  कोई  गारंटी नहीं है कि बी टी बैगन परेशानिया नहीं खड़ी करेगा .........क्या उससे कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या  नहीं खड़ी होगी यह एक विचार का मुद्दा है .............
                                                भारत में बी टी खाद्यान पर उठी बहस को लेकर पर्यावरण मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि वह फ़िलहाल बी टी बैगन की खेती को रोके रखेगी.उसके बाद इस पर किस प्रकार का कानून बनता है और उसके लागू होने के बाद क्या परिणाम होगा यह तथ्य तो भविष्य के गर्भ में है तब तक हम अपने परम्परागत बैंगन से आनन्दित होते है ...........

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

प्रेम की सजा

आज वेलेनटाइन डे के अवसर पर जब प्यार और रोमांस की चर्चा चारो ओर हो रही है प्यार को सजा से जोड़ना थोडा बेतुका लगता है .लेकिन हमारे समाज में ही इस प्रकार के प्रसंग आ चुके है तो चर्चा आवश्यक हो जाती है ............
                                           लगभग हर महीने सगोत्र विवाह एवं अंतरजातीय विवाह करने वाले युवाओ को उनके ही परिजनों द्वारा मार दिए जाने से सम्बन्धित खबरे मीडिया में आती है .इस प्रकार के आनर किलिंग के मामले आते ही रहते है ........इनकी संख्या उत्तर भारत में अधिक दिखाई पड़ती है .
                                                              परम्पराओ एवं समाज के नियमो पर ये युवा कुर्बान हो जाते है .ये एक प्रकार से मानवाधिकारो का हनन है ............जब दो व्यस्क व्यक्ति अपनी मर्जी से साथ रहने का निर्णय लेते है तो उन्हें इतनी बर्बर सजा देने वाला समाज इस तरह के कदम क्यों उठाता है?..............यह समझ से परे लगता है .....................
                                                           इस प्रकार के मामलो से भारत की विश्व में साख घटती है .लेकिन सरकार ने इन समस्याओ के मद्देनजर कुछ कदम उठाये है और भारतीय दंड संहिता १८६० में कुछ संशोधन का प्रावधान भी लाने वाली है ..............जिससे इस तरह के कामो पर लगाम जरुर लगेगी .........खैर ये घटनाये समाज को जरुर प्रभावित करती है इसलिए
इस ओर कदम जरुर बढने चाहिए .........................

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

जनता का जवाब

आज माई नेम इस खान रिलीज हुई .पिछले दिनों से चल रही शिवसेना की हुडदंग बाजी पर थोड़ी लगाम लगी .......तमाम उपद्रवो एवं उत्पाद के बाद फिल्म पूरे देश में रिलीज हो गई ..................
                                                        तमाम उपद्रवो एवं धमकियों के बावजूद फिल्म मुंबई में रिलीज हुई और हॉउस फुल रही .वैसे यह सभी सिनेमाघरों में रिलीज नहीं हुई .लेकिन फिर भी जहा रिलीज हुई वहा जनता ने हाथो हाथ लिया .
                                                                  यह जनता की हिम्मत और उसका जस्बा है जो धमकियों के बावजूद वह सिनेमाघरों तक पहुची और यह साबित कर दिया की वह किसी की धमकियों से डरने वाली नहीं ...........यह लोकतंत्र है यहाँ किसी पार्टी की बात मान जनता कोई निर्णय ले यह मुश्किल है ..............
                                                               वैसे देश के कुछ हिस्सों में थोड़ी कठिनाई हुई है लेकिन फिर भी आज का दिन जनता की हिम्मत ,उसके जस्बे और लोकतंत्र की मजबूत नीव के नाम रहा .................आखिर जनता जनार्दन ने निडर होकर जो कदम उठाया वह सराहनीय है ............

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

प्रेम

प्रेम तैर रहा है,
फागुन में,फागुनी बयार
के साथ,पर पता नहीं,
यह क्या है ?
प्रेम किसे कहते है ,
क्या होता है?
शायद यह दिल की
आरजू है, या दिमाग
का फितूर ,जो भी
है शायद एक अहसास है,
जिसे केवल अनुभव किया जा
सके ,अभिव्यक्त नहीं ,
शायद यह गलत है,
क्यूकि वैलेंटाइन डे जो
       आ रहा है,प्रेम प्रदर्शन
              का अनूठा .........
 ......अनोखा पर्व ,
      शायद ये प्रेम को
                     अभियक्त कर सके ...........

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

इंटरनेट और नोबल का शांति पुरस्कार

पिछले दिनों इंटरनेट को  नोबल के शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया.यह अफवाह नहीं बल्कि सच है .यह नोबल पुरस्कार के इतिहास में यह पहली घटना है जब किसी निर्जीव या गैर मानव को नामांकित किया गया है ......
                                                                यह बात थोड़ी अजीब है कि इंटरनेट को नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है .........वैसे हमे यह नहीं भूलना चाहिए की यह केवल एक व्यक्ति से न जुड़कर धरती पर रहने वाले प्रत्येक जीव से जुड़ा है .इंटरनेट ने विश्व में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए है. इसे हम एक वृहद समुदाय के रूप में देख सकते है जिसमे विभिन्न धर्मो के स्त्री पुरुष आपस में वार्तालाप करते है ......................
                                         इंटरनेट ने बात करने के तौर तरीको को निश्चय ही बदला है .इंटरनेट ने न  केवल विश्व में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए है बल्कि सभी भोगौलिक सीमाओ को भी समाप्त किया है .इंटरनेट ने एक नई संस्कृति को जन्म दिया है जहा बिना किसी भेदभाव के ज्ञान का आदान प्रदान होता है.............
                                                         वैसे तो इंटरनेट ने प्रसिद्ध विचारक मार्शल मैक्लुहान की ग्लोबल विलेज की अवधारणा को चरितार्थ कर नई क्रांति पैदा की है लेकिन परेशानिया भी कम नहीं है .................नोबल का शांति पुरस्कार किसे मिलेगा यह एक तकनीकी प्रश्न है ?..................
                                        इंटरनेट ने जहा ज्ञान वर्धन का कार्य किया  है वही इसने हमारे घरो में अश्लीलता को कितनी आसानी से परोसा है .हमारे किशोरों को समय से पहले    व्यस्क बनाने में कोई क़सर नहीं छोड़ी है .......................
                                                        आप इस नामांकन के बारे में क्या सोचते है ?इंटरनेट ने आपकी जीवन शैली को किस प्रकार परिवर्तित किया है ?...............यह एक प्रश्न है आपके समक्ष कमेन्ट के जरिये आप इसे अभिव्यक्त कर सकते है ..................
                                                            
                                                     

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

जय हो !

फरवरी की पहली तारीख को सुबह जब भारतवासियों ने आँख खोली तो, हममे से ही एक भारतीय अपनी धरती से दूर लॉस अन्ज्लेस में इतिहास रच रहा था ....................जी हाँ हम बात कर रहे है दक्षिण भारतीय कम्पोजर एवं गीतकार ए आर रहमान की जिन्हें स्लम डॉग फिल्म के गीत जय हो के लिए ग्रैमी पुरस्कार मिला .है ............
                                                                  रहमान पहले भारतीय है जिन्हें यह पुरस्कार व्यक्तिगत रूप से मिला है .४४ वर्षीय रहमान को  जय हो गीत के लिए पिछले साल आस्कर पुरस्कार मिल चुका है .गुलजार द्वारा लिखित इस गीत ने इतिहास रच दिया है ...............
                                                   १३ फिल्म फेयर,४ रास्ट्रीय,२ आस्कर एवं अन्य कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के विजेता रहमान ने भारत का गौरव बढाया है ............................ आशा है वह आगे भी भारत की शान बढायेगे ..............हमारी शुभकामनाये उनके साथ है ...........................

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

बोझ

मिट्टी भरा तसला सिर पर
लिए  खड़ी है वह
भाव विहीन चेहरा..........
गहरी आंखे जिनमे न जाने
क्या छिपा रही है.............
उसने, जो सृष्टी को
रचने वाली है ,पत्थर
के घर बनाने कि ठानी है,
उसका अंश जो धूल धूसरित
है ,उसे आँखों से ओझल
कैसे करे ,उसे और अपने
को एक डोर से बाँधने
के लिए ही तो उठा  रही है
यह बोझ ..............

शनिवार, 30 जनवरी 2010

आखिर आ ही गया बसंत

आखिर आ ही गया बसंत,
धुंध सी है छंट गई ,
रोशनी है आ गई ,
चमकती धूप है खिल रही ,
खिल रही है कलि -कलि,
कूक रही है कोयल,
पेड़ो ने भी पुराने कपडे उतार,
नए धारण करने की है तैयारी,
पतझड़ है उसी का परिणाम ,
चारो तरफ है  हर्ष और उल्लास,
आशा का है संचार ,
पिघल रहे है वे अहसास,
जो जमे थे महीनो से,
गर्माहट भी है आ गई,
फागुनी बयार ने अपनी कला है दिखाई
सभी उत्सव मनाने की है तैयारी में,
उत्सव,बसंतोत्सव तो चलिए हम भी,
उस उस्तव में शामिल हो जिसका हमे ,
इंतंजार था, बसंतोत्सव...........................

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

बचपन का दुःख

बचपन नाम है परेशानीयों से दूर रहने का .......जी हा जब हम जमीनी हकीकत से अनजान अपनी छोटे से संसार में खोये रहते है ...............वे ..जीवन के सुनहरे पल होते है ...........शायद सभी इससे सहमत है ..........
                               परंतु इसी संसार में कुछ बालको का जीवन ऐसा नहीं होता है .....उनका जीवन तो होटलों,ढाबो एवं घरो में झूठे बर्तन धोते और खाने के बाद टेबुल साफ करते हुए गुजरता है .अक्सर कही चाय की दुकान पर चाय ऐसा ही कोई छोटू देता है ,वह छोटू मालिको के हाथो पीटता है ,सर झुकाए सारे काम करते है ........और उफ़ तक नहीं करता है ...............
                                                        ये बाल मजदूरी है जो हमारे देश के कानून में अपराध है और इसके सजा का प्रावधान भी है .............आज बाल मजदूरी का मुद्दा मानव अधीकारो से जुड़ा है .कोई खास उम्र के बच्चे का किसी काम में लगे रहना बाल मजदूरी है .............
                                     यह बाल मजदूरी अपनी और अपने परिवार की मूलभूत आवश्कताओ को पूरा करने हेतु करता है इनकी संख्या देश में काफी है जो आपको अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टर में दीख सकते है ............ये आपको बीडी ,हीरा ,पटाखा ,कालीन उद्द्योग एवं सडको पर जूता पालिश करते मीलेगे ....................
                                             भारत में इतनी तादात में बाल मजदूरो का कारण गरीबी ,अनपढ़ता ,बेरोजगारी ,जनसंख्या  की भरमार एवं गाँव से शहरो की ओर पलायन है ................
                                                  इन बाल मजदूरो का समय से पहले कड़ी मेहनत करना अनेक परेशानीयों को पैदा करता है .ये देश की युवा धन का दुरुपयोग होने के कारण देश पर सीधा असर पड़ता है .इससे गरीबी बढती है ,सामाजिक आर्थिक असमानता बढती है ..................यह एक सामाजिक बुराई है जो खत्म हो यह आवश्यक है क्यों की देश क भविष्य ये
बालक अगर सुखी नहीं तो हम कैसे चैन से सो सकते है ............................

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

बेघर

बेघर जिनका कोई घर नहीं .......,वैसे लोग जिनके सर पर कोई छत नहीं ........,ऐसी कोई जमीन नहीं जिसे वह अपना कह सके ....,बस ऐसे ही कभी यहाँ तो कभी वहा ...........कभी फुटपाथ पर तो कभी रेलवे स्टेशन पर .......बस ऐसी ही है वो ...................
                                 इस कल्पना से ही हम और आप जैसे लोग सिहर उठते है कि एक दिन ऐसा हो कि हमारा कोई घर न हो कहा जायेगे हम?......इस स्थिति को वह रोज झेलते है ............कैसी विडंबना है यह ......और कैसा विधि का विधान है कोई महलो में है तो किसी को एक छत भी नसीब नहीं ...........शायद इसी ही नियति कहते है .........
                                                भारत में तकरीबन १३ मिलियन बेघर लोग है .देश के लगभग सभी प्रमुख शहरो में है .दिल्ली में भी इनकी संख्या काफी है .इतनी बड़ी सख्या में बेघर लोगो के होने कारण बहुत से है .............बरोजगारी ,निरक्षरता ,मानसिक बीमारिया ,घरेलू हिंसा एवं व्यापक स्तर पर गाँव से शहरो क़ी ओर रोजगार क़ी तलाश में पलायन प्रमुख कारण है .
                                           इनकी परेशानिया अनेको है इनमे अधिकाश आपको सडको पर भीख मांगते नजर आयेगे ......कई को नशा खोरी ने जकड़ रखा .आस पास के इलाकों में छोटी मोटी चोरिया और लोगो के पाकेट मारना जैसे कामो को भी ये बखूबी अंजाम देते है .....................
                                     लगभग साल भर खुली छत के नीचे रहने वाले इन लोगो में से कई को  भयंकर ठंड  मौत क़ी नीद सुला देती है ............अमूमन ये खुद को किसी जाति या समुदाय का नहीं मानते ...........मुश्किलें तब और बढ़ जाती है जब ये बेघर पुरुष न होकर स्त्री हो ........शायद इनकी परेशानियों को बताने क़ी कोई जरूरत नहीं है ............आप सभी अनुमान लगा सकते है ...........
                                             सरकार को इनके पुनर्वास पर ध्यान देने क़ी जरूरत है क्यूकि वो भी उसी लोकतंत्र का हिस्सा है जंहा हम रहते है ........वैसे सुप्रीमकोर्ट  समय समय राज्यों को कुछ आदेश अवश्य देती है लेकिन उनकी मुश्किलें बहुत है और अधिक ध्यान देने क़ी आवश्कता है .........
                किसी फिल्म का यह गाना उनके ऊपर कितना सटीक है ..................
                 मुशाफिर हो यारो न घर है न ठिकाना ,
                   बस चलते जाना चलते ही जाना है .

बुधवार, 27 जनवरी 2010

फिर मिले सुर मेरा तुम्हारा

मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा ...........यह गीत २६ जनवरी को एक नए अवतार में आया, परिस्थितिया बदली लेकिन शब्द और भावनाए वैसी ही है .देश के विभिन्न  हिस्सों में तेरह प्रमुख एतिहासिक शहरो में साठ दिनों तक फिल्माए इस गाने में देश की एकता और अखंडता की उज्ज्वल तस्वीर प्रस्तुत की गई है .पिछले कुछ दशको में बहुत सी चीजे बदली विकास ,समृधि और आर्थिक परिदृश्य लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो हमारी एक होने की भावना जो निरंतर बलवती होती  गई है ................................
                          मिले सुर मेरा तुम्हारा गीत जूम टी व़ी और टाइमस ऑफ़ इंडिया के सौजन्य से फिर से रिकार्ड किया गया एवं नई पीढ़ी के कलाकारों के साथ इसे फिर से फिल्माया गया है .पीयूष पाण्डेय द्वारा रचित यह गीत सबसे पहले १५ अगस्त १९८८ को दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया था .इस गीत की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लाया जा सकता है कि आज भी उसके बोल एवं धुनें लोगो को याद है ........देश क़ी एक पीढ़ी इस गीत को सुनते हुए बड़ी हुई  है और उससे उसकी भावनाए जुडी है ................
                                          बालीवुड के मशहूर सितारों अमिताभ बच्चन से लेकर प्रियंका चोपड़ा तक ने इसमे अभिनयकिया और सभी ने गर्व का अनुभव किया है ,हो भी क्यों न    यह हमारी देश क़ी एकता और अखंडता क़ी बात है .यह गीत देश क़ी धर्मनिरपेक्ष छवि को बखूबी प्रस्तुत करता है जहा न कोई  धर्म, न कोई जाति बस है तो एक पहचान है कि हम हिन्दुस्तानी है कही भी हो सदैव एक डोर से बंधे रहेगे ............
इस नए गाने का विडियो देखें के लिए यहाँ क्लिक करें

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

परेड की एक झलक


आज गणतंत्र दिवस है इसे हर भारतवासी को याद रखना चाहिए और इस दिन  गौरवान्वित महूसस करना चाहिए क्यूकि हम इस गणतंत्र का हिस्सा है जो तमाम मुश्किलों को झेलते हुए अडिग,अमर और अजेय है .................
                                 गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट के निकट  राजपथ पर परेड होती है जो भारतीय गणतंत्र की शान का प्रतीक है .प्रत्येक भारतीय उस क्षण परेड को देख अभिभूत हो यही कहता है क़ि जहा डाल डाल पर सोने क़ि चिड़िया करती है बसेरा वह भारत देश है मेरा ...................
                                              26 जनवरी क़ी सुबह कोहरे में लिपटे राजपथ के दोनों तरफ एकत्रित जन समूह बेसब्री से परेड शुरू होने का इंतजार कर रहा था और देशभक्ति धुनों को सुन आनंदित हो रहा था.ठंड ज्यादा होने के बावजूद उनके उत्साह में कोई कमी नहीं दिखाई पड़ रही थी.सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खाकी वर्दी धारी जवान भी अपने काम को बखूबी निभा रहे थे.
                                          तकरीबन 10 बजे व़ी आई प़ी लोगो का आगमन प्रारम्भ हुआ.उसके बाद सेना के जवान आने शुरू हुए .सेना के  विभिन्न दलों को देख कर अनुशासन क़ी महत्ता का अनुभव हुआ .उन  दलों को देख यह अनुभव हुआ क़ि सभी एक जैसे है किसी का  कोई धर्म नहीं, कोई जाति नहीं वह तो बस सब एक दूजे के क्लोन है .ऊंट पर बैठे सैनिको की तो बात ही निराली थी दुल्हन की तरह सजे ऊँटो का धैर्य तो देखते ही बन रहा था मानों उन्हें पता हो क़ि इतने व्यापक स्तर पर आयोजन हो रहा है............
                विभिन्न प्रदेशो एवं मंत्रालयों क़ी झाकिया तो मंत्र मुग्ध करने वाली थी.उसके बाद  सैनिको द्वारा मोटरसैकिल पर और आकाश में क़ी गई कला बाजियों का कोई जवाब ही नहीं था .यह क्षण प्रत्येक भारतीय को गर्व से भर देता है .....................

सोमवार, 25 जनवरी 2010

लडकियों का दिन


लडकियों का भी एक दिन होना चाहिए क्यूंकि हर किसी का एक दिन होता है ..........जी हा यह बात एक निम्न वर्ग की अधेड़ महिला ने कहा ......यह पूछने पर की सरकार ने साल में एक दिन लडकियों के लिए रखा है उसे इसके बारे में पता है. उसे ही क्या लगभग नब्बे प्रतिशत  पढ़े लिखे लोग इस बात से अनभिज्ञ थे की 24 जनवरी को रास्ट्रीय बालिका दिवस है .उस दिन महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा दिए गए विज्ञापन में गलती के कारण हुए बवाल की चर्चा न ही करे तो बेहतर होगा ...................
                            आइए हम दूसरी बातो  पर न विचार  करते हुए उस नन्ही दुनिया में चलते है जो अपने अस्तित्व के लिए निरंतर संघर्ष कर रही है उसका संघर्ष अपने को जीवित रखने से लेकर दुनिया में नाम कमाने तक है ....................
                                                   आज आजादी के बाद विकास की अच्छी तस्वीर सामने आई है.अच्छे संभ्रांत परिवारों में सभी बेटे की इच्छा व्यक्त करते है बेटी की नहीं, जी हाँ यह एक सच है जो केवल चारदीवारी के भीतर होता है उसे बाहर आने की अनुमति नहीं होती है,हो भी क्यों न यह उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पर वार जो करती  है............................
                                            लोगो की इसी मानसिकता ने भारत में लिंगानुपात की यह दुर्दशा की है. लिंगानुपात की इस स्थिति से  न जाने कितने अपराध जन्म लेंगे इसका अंदाजा लगाना जरा मुश्किल है. यह अपराध औरतो के प्रति हिंसा से लेकर अंपने बेटे के लिए बहू खरीदने तक है .........जरा सोचिये तो अगर देश में लडकिया नहीं होगी तो स्थिति क्या होगी, किसे आप धर्मपत्नी बनायेगे, किसके साथ अपना सुख दुःख बाटेगे,कौन आपको राखी बाधेगी,किसकी तोतली बोली पर आप रिझेगे सोचिये ...........................
                                                  अब वक्त आ गया है क़ि हम सब मिलकर इसके लिए कदम उठाये ,इसके बारे में सोचे क्यूकि इसकी बिना भविष्य सुखद नहीं होगा ................................

रविवार, 24 जनवरी 2010

आल इज वेल


पिछले दिनों हाल ही में आई फिल्म थ्री इडियट देखी. फिल्म को देखकर अच्छा लगा पर एक बात जो शायद अगले कुछ दिनों तक नहीं भूलेगी वह है आल इज वेल. जी हा फिल्म में आई किसी मुसीबत में किरदारों का आल इज वेल कहना देखकर लगा की कितनी भी मुसीबते हो लेकिन हिम्मत रखे तो परेशानी कम हो सकती है ............
                 पिछले कुछ दिनों से युवाओं में ख़ुदकुशी करने की जो प्रवृति बढ़ी है उस पर गौर करने की आवश्कता है . आज आगे बढ़ने की होड़ ने शायद भावनाए खत्म कर दी है . माँ एवं पिता को अपना कैरिअर बनाना है और बच्चे को किसी से पीछे नहीं देख सकते इसलिए उस पर निरंतर दबाव बनाते है जिसका नतीजा यह होता है बच्चा तनावग्रस्त हो उस काम को अंजाम देता है जो उसे नहीं देना चाहिए ....... काश की वह भी समझ पाता और अपने दिल को समझा पाता की आल इस वेल ..................
                     .......जीवन में उसे आगे तो जरुर बढना है लेकिन अपनी आहुति देकर नहीं बल्कि हँसते खेलते हुए .काम वही करे जो उसे पसंद हो न की माँ और पिता की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए . इस  तरह से किए गए प्रयत्न उसके उज्ज्वल  भविष्य   के निर्माण में सहायक होंगे ................

शनिवार, 23 जनवरी 2010

प्रियंका ने मारी बाजी


कभी मिस वर्ड रही प्रियंका चोपड़ा को उनकी फिल्म फैशन में अभिनय हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया है ....तीखे नैन नक्श वाली प्रियंका खुबसुरत होने के साथ ही एक अच्छी अदाकारा भी है ...फैशन में अच्छा अभिनय कर उन्होंने सबकी वाह वाही लुटी है ..
                        फिल्म  फैशन में उन्होंने एक छोटे शहर की लड़की का किरदार निभाया है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए किस तरह संघर्ष करती है .उस संघर्ष के दौरान किस प्रकार वह जिन्दगी की कठोर सच्चाइओ से रूबरू होती है.सफलता के रास्ते चलते हुए भटकने पर वह निराश होकर बैठती नहीं बल्कि फिर से पूरी हिम्मत के साथ उठ खड़ी होती है और सफलता की नई ऊँचाइओ को छूती है ..............
                          प्रियंका का अभिनय काबिलेतारीफ है ............

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

कोहरा


सुबह खिड़की से देखा धुंधला सफेद सा
मन ने सोचा सपना है ......
अरे नहीं यह तो कोहरा है
धुंध सा कोहरा जिसमे
बना लो चाहे जितनी शक्ले
जो भी रूप दे लो उन्हें...........
कोहरे के बीच खड़े खुद को
बिल्कुल अकेला पाया
दूर दूर तक कोई नहीं.......
जैसे इस दुनिया में केवल
मै हु, मै ही मै हू......
कोहरे ने दूरिया बढ़ा दी
कही कुछ नहीं दिखाई देता
उड़ाने देर से हो रही है
रेलों को मंजिल तक
पहुंचने में मुश्किल है
सड़के सुनसान है यही
तो कोहरे की माया है........

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

पढने की कोई उम्र नहीं होती

पढने की कोई उम्र नहीं होती,जी हा किसी ने सच ही कहा है कि पढने कि कोई उम्र नहीं होती लेकिन अब पढने की इच्छा नही होती .................,क्या करू अब टाइम नही है .................
   ..........यह बात मध्य प्रदेश के छोटे से गाँव से आई घरेलू नौकरानी सीता राशन कार्ड से जुड़े किसी कागजात पर अंगूठा लगते हुए कहती है.........अधेड़ उम्र की सीता से यह सवाल पूछने पर की वह अपने गाँव में खेती क्यूँ नही करती वह कहती है खेती में क्या रखा है मेहनत करो और टाइम से बारिश नहीं हुई तो कर्ज लेना पड़ेगा और समय से कर्ज चुकता नहीं करने पर हमारी दशा और खराब हो जाएगी .इसलिए हम यहा आ गये यहाँ कम से कम मेहनत करने से पैसे तो मिलते है.........................
............खुद अनपढ़ है लेकिन उनकी कोशिश है की उनकी बेटिया जरुर पढ़े, लेकिन पढाये भी तो कहा क्यूंकि अच्छी शिक्षा के लिए पैसे नहीं है और सरकारी स्कुलो में पढाई अच्छी नही होती.उनके अनुसार कक्षा पाँच में पढने वाले बच्चो को भी कुछ नहीं आता................................और इस तरह उनकी अगली पीढ़ी भी लगभग अनपढ़ ही रह जाएगी. ....................................आज भारत की आजादी के छह दशक बाद भी स्त्री साक्षरता का ये हाल है.आज स्त्री अगर पढना भी चाहे तो परेशानियों के सामने उसकी इच्छा दम तोड़ देती है........................खेती का ये हाल है की गाँव वासी उसे घाटे का सौदा समझ शहरो की ओर पलायन कर रहे है .................... इससे शहरो के ऊपर बोझ बढ़ रहा है और शहरो में बुनियादी सुविधाओ के अभाव ने एक नई जंग छेड़ दी है ......................क्या इन मुद्दो पर सोचने की आवश्यकता नहीं है .....................

बुधवार, 20 जनवरी 2010

बसंत

बसंत आया
यह कैसा बसंत आया
कोहरे में लिपटा बसंत
जिसमे न तो धूप की गरमाहट है
न ही फगुई बयार
बसंत जिसमे एक आशा होती है
एक संचार होता है, जीवंत संचार
जो महीनो से जमे हुए
अहसास को पिघलाता है
लेकिन वह बसंत कहा है?
लोग कहते है यह ग्लोबल वार्मिंग
का असर है...........
रितुये अपना समय बदल रही है.........
पता नहीं यह क्या है? बसंत तो नहीं है,
बसंत होता तो है, लेकिन पता नहीं
कहा है ?
आओ खोजे उस बसंत को
जो छुप गया है जाने कहा
उसे खोजे
हम अपने गलियों सडको बाजारों में ........
जाने वह कहा मिल जाए
वह बसंत जिसे हम
खोज रहे है ........

रविवार, 17 जनवरी 2010

बचपन

एक दिन मैंने बचपन देखा,
कडकडाती ठंड में ठंड से बेपरवाह देखा,
धुल से सने हाथो में कुछ पत्थर देखा,
इस भीड़ भाड़ की जिन्दगी से तटस्थ देखा,
माँ के आंचल से दूर अपने में खोया देखा,
थोड़ी से आहट डरते सकुचाते देखा,
मेरे पास जाने पर दूर हटते देखा,

जिन्दगी की सच्चाइयो से बेपरवाह देखा

कुम्भ मेला


ये देखो यह कुम्भ मेला आया,
कुम्भ मेला नही महामेला आया,
गृहस्थो,साधु,सन्यासियों का महारेला आया,
बारह बरसों के बाद सदी का पहला कुम्भमेला आया,
बरसों का पाप धुलने एवं पुन्य कमाने का अवसर आया,
सन्यासियों एवं आख्दो के शक्ति प्रदर्शन का मौका आया,
प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था के निरिक्षण का समय आया,
ये देखो यह कुम्भ मेला आया

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

दिल्ली और बसे


देश की राजधानी दिल्ली की सडको पर दौड़ती बसों की अपनी ही माया है .वे चाहे ब्लूलाइन हो या डीटीसी सबकी रफ़्तार एक सी है .दोनों को हाथ देते रहो पर नहीं रूकती न जाने क्यों उनकी लीला वो ही जाने .....................
दोनों इंसान को इंसान न समझ कर भेड़ बकरी समझती है इन्हे बसों में भरते जाओ .कभी कभी तो श्रीमान ड्राइवर महोदय की इच्छा हुई वह और बसों के साथ रेस लगाने पर उतारू हो जाते है .बेचारे पैसेंजेर की जान तब तक आफत में होती है जब तक वह अपनी मंजिल तक पहुच न जाए .........................
बेचारे पैसेंजेर के लिए मुसीबत तो तब होती है जब वह दिल्ली में नया हो बसों में उतरने और चड़ने में सफल होने पर अपने आपको को विजेता महसूस करता है .जो बसों की परेशानियों को नहीं जनता उनकी मुश्किलें और भी बड़ जाती है ...............
दिल्ली में कौन सी बस कहा मिलेगी और किस बस स्टाप पर कौन सी किस नम्बर के बस रुकेगी यह एक जनरल नालेज की बात है जिसकी जानकारी के बिना जीवन कठिन जो जाता है ................
मुश्किल तब और भी बढ़ जाती है जब आप सुबह सुबह बस में चढ़ते है और उतरने पर मोबाइल और पर्स गायब रहते है उस समय आप लूटे पिटे अपनी बेवकूफी पर हँसते हुए अपने कम में लग जाते है .कई बार हम बसों में किसी दया खाकर उसे बैठने की जगह देते है थोड़ी देर बात पता चलता है उसी ने आपका सामान गायब कर दिया .....................
रोजाना बसों में कुछ ऐसे चेहरे भी दिखाई पड़ते है जिन्हें आप जानते तो नहीं है पर उनकी एक तस्वीर जेहन में बसी होती है .
वे चेहरे होते तो अनजान है लेकिन उनकी एक पहचान कंही न कंही हमारे मन में जरुर होती है जो अगर  एक दो  दिन न दिखाई पड़े तो मन ही मन हम सोचते है वह सुरत कहा गई जो रोज दिखाई पड़ती थी ...................
शायद इंसान के इसी स्वभाव के कारण उसे इंसान कहते है और इसे  ही इंसानियत कहते है जो अभी भी दुनिया में है .............

इलेक्ट्रानिक प्रमाण पत्र और छात्र

सरकार का यह निर्णय की प्रमाण पत्र ऑनलाइन होंगे बहुत ही सराहनीय  है .क्यूकि प्रमाण पत्र एक बेरोजगार छात्र की पूर्ण सम्पति होती है जिसके अभाव में उसके सभी काम रुक जाते है ....................................
यदि वह चोरी हो जाए तो उसकी मुसीबत का अंदाजा लग सकता है ....................स्थिति तब और खराब हो जाती है जब किसी आवेदन पत्र  में प्रमाण पत्र की फोटो कापी को अटेस्ट  करना पड़ता है क्यूकि इस स्थिति में उसे बहुत चक्कर लगाना पड़ता है ...........    

सोमवार, 11 जनवरी 2010

मौसम की मार

मौसम ने यह  कैसी करामात दिखाई है ,
इतनी भयंकर ठण्ड जो आई है ,
रजाई ,स्वेटर और शाल की बहार आई  है ,
चाय , काफी और  पराठो ने रसोई में  जगह  बनाई है ,
नहाने और  पानी  से हुई जो  लड़ाई है  ,
ईश्वर ने गरीबो पर यह कैसे कहर बरसाई है,
ठंडी ने उनकी जिन्दगी नरक बनाई है ,
पेट तो ख़ाली था ही मौत भी सामने जो आई है ,
हाय    रे बेबसी जो अपनी मुझे समझ आई है ,
चाह करके भी कुछ न कर सकी ऐसी मज़बूरी आई है ,
काश कुछ कर  सकती ऐसा मै सौभाग्य मै पाऊ
उनकी परेशानिया कुछ कम हो इससे मै धन्य हो जाऊ.
un

शनिवार, 2 जनवरी 2010

क्या कंहू परीक्षा है

क्या कंहू परीक्षा है
जिसके प्रति मेरी अनिच्छा है
पिछले साल के अध्धयन की समीक्षा है
एक नौकरी और धन की प्रतीक्षा है
जो कभी खत्म न हो ऐसी इच्छा है
अपने अस्तित्व की करनी जो रक्षा है
क्या कंहू परीक्षा है