शनिवार, 30 जनवरी 2010

आखिर आ ही गया बसंत

आखिर आ ही गया बसंत,
धुंध सी है छंट गई ,
रोशनी है आ गई ,
चमकती धूप है खिल रही ,
खिल रही है कलि -कलि,
कूक रही है कोयल,
पेड़ो ने भी पुराने कपडे उतार,
नए धारण करने की है तैयारी,
पतझड़ है उसी का परिणाम ,
चारो तरफ है  हर्ष और उल्लास,
आशा का है संचार ,
पिघल रहे है वे अहसास,
जो जमे थे महीनो से,
गर्माहट भी है आ गई,
फागुनी बयार ने अपनी कला है दिखाई
सभी उत्सव मनाने की है तैयारी में,
उत्सव,बसंतोत्सव तो चलिए हम भी,
उस उस्तव में शामिल हो जिसका हमे ,
इंतंजार था, बसंतोत्सव...........................

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

बचपन का दुःख

बचपन नाम है परेशानीयों से दूर रहने का .......जी हा जब हम जमीनी हकीकत से अनजान अपनी छोटे से संसार में खोये रहते है ...............वे ..जीवन के सुनहरे पल होते है ...........शायद सभी इससे सहमत है ..........
                               परंतु इसी संसार में कुछ बालको का जीवन ऐसा नहीं होता है .....उनका जीवन तो होटलों,ढाबो एवं घरो में झूठे बर्तन धोते और खाने के बाद टेबुल साफ करते हुए गुजरता है .अक्सर कही चाय की दुकान पर चाय ऐसा ही कोई छोटू देता है ,वह छोटू मालिको के हाथो पीटता है ,सर झुकाए सारे काम करते है ........और उफ़ तक नहीं करता है ...............
                                                        ये बाल मजदूरी है जो हमारे देश के कानून में अपराध है और इसके सजा का प्रावधान भी है .............आज बाल मजदूरी का मुद्दा मानव अधीकारो से जुड़ा है .कोई खास उम्र के बच्चे का किसी काम में लगे रहना बाल मजदूरी है .............
                                     यह बाल मजदूरी अपनी और अपने परिवार की मूलभूत आवश्कताओ को पूरा करने हेतु करता है इनकी संख्या देश में काफी है जो आपको अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टर में दीख सकते है ............ये आपको बीडी ,हीरा ,पटाखा ,कालीन उद्द्योग एवं सडको पर जूता पालिश करते मीलेगे ....................
                                             भारत में इतनी तादात में बाल मजदूरो का कारण गरीबी ,अनपढ़ता ,बेरोजगारी ,जनसंख्या  की भरमार एवं गाँव से शहरो की ओर पलायन है ................
                                                  इन बाल मजदूरो का समय से पहले कड़ी मेहनत करना अनेक परेशानीयों को पैदा करता है .ये देश की युवा धन का दुरुपयोग होने के कारण देश पर सीधा असर पड़ता है .इससे गरीबी बढती है ,सामाजिक आर्थिक असमानता बढती है ..................यह एक सामाजिक बुराई है जो खत्म हो यह आवश्यक है क्यों की देश क भविष्य ये
बालक अगर सुखी नहीं तो हम कैसे चैन से सो सकते है ............................

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

बेघर

बेघर जिनका कोई घर नहीं .......,वैसे लोग जिनके सर पर कोई छत नहीं ........,ऐसी कोई जमीन नहीं जिसे वह अपना कह सके ....,बस ऐसे ही कभी यहाँ तो कभी वहा ...........कभी फुटपाथ पर तो कभी रेलवे स्टेशन पर .......बस ऐसी ही है वो ...................
                                 इस कल्पना से ही हम और आप जैसे लोग सिहर उठते है कि एक दिन ऐसा हो कि हमारा कोई घर न हो कहा जायेगे हम?......इस स्थिति को वह रोज झेलते है ............कैसी विडंबना है यह ......और कैसा विधि का विधान है कोई महलो में है तो किसी को एक छत भी नसीब नहीं ...........शायद इसी ही नियति कहते है .........
                                                भारत में तकरीबन १३ मिलियन बेघर लोग है .देश के लगभग सभी प्रमुख शहरो में है .दिल्ली में भी इनकी संख्या काफी है .इतनी बड़ी सख्या में बेघर लोगो के होने कारण बहुत से है .............बरोजगारी ,निरक्षरता ,मानसिक बीमारिया ,घरेलू हिंसा एवं व्यापक स्तर पर गाँव से शहरो क़ी ओर रोजगार क़ी तलाश में पलायन प्रमुख कारण है .
                                           इनकी परेशानिया अनेको है इनमे अधिकाश आपको सडको पर भीख मांगते नजर आयेगे ......कई को नशा खोरी ने जकड़ रखा .आस पास के इलाकों में छोटी मोटी चोरिया और लोगो के पाकेट मारना जैसे कामो को भी ये बखूबी अंजाम देते है .....................
                                     लगभग साल भर खुली छत के नीचे रहने वाले इन लोगो में से कई को  भयंकर ठंड  मौत क़ी नीद सुला देती है ............अमूमन ये खुद को किसी जाति या समुदाय का नहीं मानते ...........मुश्किलें तब और बढ़ जाती है जब ये बेघर पुरुष न होकर स्त्री हो ........शायद इनकी परेशानियों को बताने क़ी कोई जरूरत नहीं है ............आप सभी अनुमान लगा सकते है ...........
                                             सरकार को इनके पुनर्वास पर ध्यान देने क़ी जरूरत है क्यूकि वो भी उसी लोकतंत्र का हिस्सा है जंहा हम रहते है ........वैसे सुप्रीमकोर्ट  समय समय राज्यों को कुछ आदेश अवश्य देती है लेकिन उनकी मुश्किलें बहुत है और अधिक ध्यान देने क़ी आवश्कता है .........
                किसी फिल्म का यह गाना उनके ऊपर कितना सटीक है ..................
                 मुशाफिर हो यारो न घर है न ठिकाना ,
                   बस चलते जाना चलते ही जाना है .

बुधवार, 27 जनवरी 2010

फिर मिले सुर मेरा तुम्हारा

मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा ...........यह गीत २६ जनवरी को एक नए अवतार में आया, परिस्थितिया बदली लेकिन शब्द और भावनाए वैसी ही है .देश के विभिन्न  हिस्सों में तेरह प्रमुख एतिहासिक शहरो में साठ दिनों तक फिल्माए इस गाने में देश की एकता और अखंडता की उज्ज्वल तस्वीर प्रस्तुत की गई है .पिछले कुछ दशको में बहुत सी चीजे बदली विकास ,समृधि और आर्थिक परिदृश्य लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो हमारी एक होने की भावना जो निरंतर बलवती होती  गई है ................................
                          मिले सुर मेरा तुम्हारा गीत जूम टी व़ी और टाइमस ऑफ़ इंडिया के सौजन्य से फिर से रिकार्ड किया गया एवं नई पीढ़ी के कलाकारों के साथ इसे फिर से फिल्माया गया है .पीयूष पाण्डेय द्वारा रचित यह गीत सबसे पहले १५ अगस्त १९८८ को दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया था .इस गीत की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लाया जा सकता है कि आज भी उसके बोल एवं धुनें लोगो को याद है ........देश क़ी एक पीढ़ी इस गीत को सुनते हुए बड़ी हुई  है और उससे उसकी भावनाए जुडी है ................
                                          बालीवुड के मशहूर सितारों अमिताभ बच्चन से लेकर प्रियंका चोपड़ा तक ने इसमे अभिनयकिया और सभी ने गर्व का अनुभव किया है ,हो भी क्यों न    यह हमारी देश क़ी एकता और अखंडता क़ी बात है .यह गीत देश क़ी धर्मनिरपेक्ष छवि को बखूबी प्रस्तुत करता है जहा न कोई  धर्म, न कोई जाति बस है तो एक पहचान है कि हम हिन्दुस्तानी है कही भी हो सदैव एक डोर से बंधे रहेगे ............
इस नए गाने का विडियो देखें के लिए यहाँ क्लिक करें

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

परेड की एक झलक


आज गणतंत्र दिवस है इसे हर भारतवासी को याद रखना चाहिए और इस दिन  गौरवान्वित महूसस करना चाहिए क्यूकि हम इस गणतंत्र का हिस्सा है जो तमाम मुश्किलों को झेलते हुए अडिग,अमर और अजेय है .................
                                 गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट के निकट  राजपथ पर परेड होती है जो भारतीय गणतंत्र की शान का प्रतीक है .प्रत्येक भारतीय उस क्षण परेड को देख अभिभूत हो यही कहता है क़ि जहा डाल डाल पर सोने क़ि चिड़िया करती है बसेरा वह भारत देश है मेरा ...................
                                              26 जनवरी क़ी सुबह कोहरे में लिपटे राजपथ के दोनों तरफ एकत्रित जन समूह बेसब्री से परेड शुरू होने का इंतजार कर रहा था और देशभक्ति धुनों को सुन आनंदित हो रहा था.ठंड ज्यादा होने के बावजूद उनके उत्साह में कोई कमी नहीं दिखाई पड़ रही थी.सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खाकी वर्दी धारी जवान भी अपने काम को बखूबी निभा रहे थे.
                                          तकरीबन 10 बजे व़ी आई प़ी लोगो का आगमन प्रारम्भ हुआ.उसके बाद सेना के जवान आने शुरू हुए .सेना के  विभिन्न दलों को देख कर अनुशासन क़ी महत्ता का अनुभव हुआ .उन  दलों को देख यह अनुभव हुआ क़ि सभी एक जैसे है किसी का  कोई धर्म नहीं, कोई जाति नहीं वह तो बस सब एक दूजे के क्लोन है .ऊंट पर बैठे सैनिको की तो बात ही निराली थी दुल्हन की तरह सजे ऊँटो का धैर्य तो देखते ही बन रहा था मानों उन्हें पता हो क़ि इतने व्यापक स्तर पर आयोजन हो रहा है............
                विभिन्न प्रदेशो एवं मंत्रालयों क़ी झाकिया तो मंत्र मुग्ध करने वाली थी.उसके बाद  सैनिको द्वारा मोटरसैकिल पर और आकाश में क़ी गई कला बाजियों का कोई जवाब ही नहीं था .यह क्षण प्रत्येक भारतीय को गर्व से भर देता है .....................

सोमवार, 25 जनवरी 2010

लडकियों का दिन


लडकियों का भी एक दिन होना चाहिए क्यूंकि हर किसी का एक दिन होता है ..........जी हा यह बात एक निम्न वर्ग की अधेड़ महिला ने कहा ......यह पूछने पर की सरकार ने साल में एक दिन लडकियों के लिए रखा है उसे इसके बारे में पता है. उसे ही क्या लगभग नब्बे प्रतिशत  पढ़े लिखे लोग इस बात से अनभिज्ञ थे की 24 जनवरी को रास्ट्रीय बालिका दिवस है .उस दिन महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा दिए गए विज्ञापन में गलती के कारण हुए बवाल की चर्चा न ही करे तो बेहतर होगा ...................
                            आइए हम दूसरी बातो  पर न विचार  करते हुए उस नन्ही दुनिया में चलते है जो अपने अस्तित्व के लिए निरंतर संघर्ष कर रही है उसका संघर्ष अपने को जीवित रखने से लेकर दुनिया में नाम कमाने तक है ....................
                                                   आज आजादी के बाद विकास की अच्छी तस्वीर सामने आई है.अच्छे संभ्रांत परिवारों में सभी बेटे की इच्छा व्यक्त करते है बेटी की नहीं, जी हाँ यह एक सच है जो केवल चारदीवारी के भीतर होता है उसे बाहर आने की अनुमति नहीं होती है,हो भी क्यों न यह उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पर वार जो करती  है............................
                                            लोगो की इसी मानसिकता ने भारत में लिंगानुपात की यह दुर्दशा की है. लिंगानुपात की इस स्थिति से  न जाने कितने अपराध जन्म लेंगे इसका अंदाजा लगाना जरा मुश्किल है. यह अपराध औरतो के प्रति हिंसा से लेकर अंपने बेटे के लिए बहू खरीदने तक है .........जरा सोचिये तो अगर देश में लडकिया नहीं होगी तो स्थिति क्या होगी, किसे आप धर्मपत्नी बनायेगे, किसके साथ अपना सुख दुःख बाटेगे,कौन आपको राखी बाधेगी,किसकी तोतली बोली पर आप रिझेगे सोचिये ...........................
                                                  अब वक्त आ गया है क़ि हम सब मिलकर इसके लिए कदम उठाये ,इसके बारे में सोचे क्यूकि इसकी बिना भविष्य सुखद नहीं होगा ................................

रविवार, 24 जनवरी 2010

आल इज वेल


पिछले दिनों हाल ही में आई फिल्म थ्री इडियट देखी. फिल्म को देखकर अच्छा लगा पर एक बात जो शायद अगले कुछ दिनों तक नहीं भूलेगी वह है आल इज वेल. जी हा फिल्म में आई किसी मुसीबत में किरदारों का आल इज वेल कहना देखकर लगा की कितनी भी मुसीबते हो लेकिन हिम्मत रखे तो परेशानी कम हो सकती है ............
                 पिछले कुछ दिनों से युवाओं में ख़ुदकुशी करने की जो प्रवृति बढ़ी है उस पर गौर करने की आवश्कता है . आज आगे बढ़ने की होड़ ने शायद भावनाए खत्म कर दी है . माँ एवं पिता को अपना कैरिअर बनाना है और बच्चे को किसी से पीछे नहीं देख सकते इसलिए उस पर निरंतर दबाव बनाते है जिसका नतीजा यह होता है बच्चा तनावग्रस्त हो उस काम को अंजाम देता है जो उसे नहीं देना चाहिए ....... काश की वह भी समझ पाता और अपने दिल को समझा पाता की आल इस वेल ..................
                     .......जीवन में उसे आगे तो जरुर बढना है लेकिन अपनी आहुति देकर नहीं बल्कि हँसते खेलते हुए .काम वही करे जो उसे पसंद हो न की माँ और पिता की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए . इस  तरह से किए गए प्रयत्न उसके उज्ज्वल  भविष्य   के निर्माण में सहायक होंगे ................

शनिवार, 23 जनवरी 2010

प्रियंका ने मारी बाजी


कभी मिस वर्ड रही प्रियंका चोपड़ा को उनकी फिल्म फैशन में अभिनय हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया है ....तीखे नैन नक्श वाली प्रियंका खुबसुरत होने के साथ ही एक अच्छी अदाकारा भी है ...फैशन में अच्छा अभिनय कर उन्होंने सबकी वाह वाही लुटी है ..
                        फिल्म  फैशन में उन्होंने एक छोटे शहर की लड़की का किरदार निभाया है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए किस तरह संघर्ष करती है .उस संघर्ष के दौरान किस प्रकार वह जिन्दगी की कठोर सच्चाइओ से रूबरू होती है.सफलता के रास्ते चलते हुए भटकने पर वह निराश होकर बैठती नहीं बल्कि फिर से पूरी हिम्मत के साथ उठ खड़ी होती है और सफलता की नई ऊँचाइओ को छूती है ..............
                          प्रियंका का अभिनय काबिलेतारीफ है ............

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

कोहरा


सुबह खिड़की से देखा धुंधला सफेद सा
मन ने सोचा सपना है ......
अरे नहीं यह तो कोहरा है
धुंध सा कोहरा जिसमे
बना लो चाहे जितनी शक्ले
जो भी रूप दे लो उन्हें...........
कोहरे के बीच खड़े खुद को
बिल्कुल अकेला पाया
दूर दूर तक कोई नहीं.......
जैसे इस दुनिया में केवल
मै हु, मै ही मै हू......
कोहरे ने दूरिया बढ़ा दी
कही कुछ नहीं दिखाई देता
उड़ाने देर से हो रही है
रेलों को मंजिल तक
पहुंचने में मुश्किल है
सड़के सुनसान है यही
तो कोहरे की माया है........

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

पढने की कोई उम्र नहीं होती

पढने की कोई उम्र नहीं होती,जी हा किसी ने सच ही कहा है कि पढने कि कोई उम्र नहीं होती लेकिन अब पढने की इच्छा नही होती .................,क्या करू अब टाइम नही है .................
   ..........यह बात मध्य प्रदेश के छोटे से गाँव से आई घरेलू नौकरानी सीता राशन कार्ड से जुड़े किसी कागजात पर अंगूठा लगते हुए कहती है.........अधेड़ उम्र की सीता से यह सवाल पूछने पर की वह अपने गाँव में खेती क्यूँ नही करती वह कहती है खेती में क्या रखा है मेहनत करो और टाइम से बारिश नहीं हुई तो कर्ज लेना पड़ेगा और समय से कर्ज चुकता नहीं करने पर हमारी दशा और खराब हो जाएगी .इसलिए हम यहा आ गये यहाँ कम से कम मेहनत करने से पैसे तो मिलते है.........................
............खुद अनपढ़ है लेकिन उनकी कोशिश है की उनकी बेटिया जरुर पढ़े, लेकिन पढाये भी तो कहा क्यूंकि अच्छी शिक्षा के लिए पैसे नहीं है और सरकारी स्कुलो में पढाई अच्छी नही होती.उनके अनुसार कक्षा पाँच में पढने वाले बच्चो को भी कुछ नहीं आता................................और इस तरह उनकी अगली पीढ़ी भी लगभग अनपढ़ ही रह जाएगी. ....................................आज भारत की आजादी के छह दशक बाद भी स्त्री साक्षरता का ये हाल है.आज स्त्री अगर पढना भी चाहे तो परेशानियों के सामने उसकी इच्छा दम तोड़ देती है........................खेती का ये हाल है की गाँव वासी उसे घाटे का सौदा समझ शहरो की ओर पलायन कर रहे है .................... इससे शहरो के ऊपर बोझ बढ़ रहा है और शहरो में बुनियादी सुविधाओ के अभाव ने एक नई जंग छेड़ दी है ......................क्या इन मुद्दो पर सोचने की आवश्यकता नहीं है .....................

बुधवार, 20 जनवरी 2010

बसंत

बसंत आया
यह कैसा बसंत आया
कोहरे में लिपटा बसंत
जिसमे न तो धूप की गरमाहट है
न ही फगुई बयार
बसंत जिसमे एक आशा होती है
एक संचार होता है, जीवंत संचार
जो महीनो से जमे हुए
अहसास को पिघलाता है
लेकिन वह बसंत कहा है?
लोग कहते है यह ग्लोबल वार्मिंग
का असर है...........
रितुये अपना समय बदल रही है.........
पता नहीं यह क्या है? बसंत तो नहीं है,
बसंत होता तो है, लेकिन पता नहीं
कहा है ?
आओ खोजे उस बसंत को
जो छुप गया है जाने कहा
उसे खोजे
हम अपने गलियों सडको बाजारों में ........
जाने वह कहा मिल जाए
वह बसंत जिसे हम
खोज रहे है ........

रविवार, 17 जनवरी 2010

बचपन

एक दिन मैंने बचपन देखा,
कडकडाती ठंड में ठंड से बेपरवाह देखा,
धुल से सने हाथो में कुछ पत्थर देखा,
इस भीड़ भाड़ की जिन्दगी से तटस्थ देखा,
माँ के आंचल से दूर अपने में खोया देखा,
थोड़ी से आहट डरते सकुचाते देखा,
मेरे पास जाने पर दूर हटते देखा,

जिन्दगी की सच्चाइयो से बेपरवाह देखा

कुम्भ मेला


ये देखो यह कुम्भ मेला आया,
कुम्भ मेला नही महामेला आया,
गृहस्थो,साधु,सन्यासियों का महारेला आया,
बारह बरसों के बाद सदी का पहला कुम्भमेला आया,
बरसों का पाप धुलने एवं पुन्य कमाने का अवसर आया,
सन्यासियों एवं आख्दो के शक्ति प्रदर्शन का मौका आया,
प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था के निरिक्षण का समय आया,
ये देखो यह कुम्भ मेला आया

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

दिल्ली और बसे


देश की राजधानी दिल्ली की सडको पर दौड़ती बसों की अपनी ही माया है .वे चाहे ब्लूलाइन हो या डीटीसी सबकी रफ़्तार एक सी है .दोनों को हाथ देते रहो पर नहीं रूकती न जाने क्यों उनकी लीला वो ही जाने .....................
दोनों इंसान को इंसान न समझ कर भेड़ बकरी समझती है इन्हे बसों में भरते जाओ .कभी कभी तो श्रीमान ड्राइवर महोदय की इच्छा हुई वह और बसों के साथ रेस लगाने पर उतारू हो जाते है .बेचारे पैसेंजेर की जान तब तक आफत में होती है जब तक वह अपनी मंजिल तक पहुच न जाए .........................
बेचारे पैसेंजेर के लिए मुसीबत तो तब होती है जब वह दिल्ली में नया हो बसों में उतरने और चड़ने में सफल होने पर अपने आपको को विजेता महसूस करता है .जो बसों की परेशानियों को नहीं जनता उनकी मुश्किलें और भी बड़ जाती है ...............
दिल्ली में कौन सी बस कहा मिलेगी और किस बस स्टाप पर कौन सी किस नम्बर के बस रुकेगी यह एक जनरल नालेज की बात है जिसकी जानकारी के बिना जीवन कठिन जो जाता है ................
मुश्किल तब और भी बढ़ जाती है जब आप सुबह सुबह बस में चढ़ते है और उतरने पर मोबाइल और पर्स गायब रहते है उस समय आप लूटे पिटे अपनी बेवकूफी पर हँसते हुए अपने कम में लग जाते है .कई बार हम बसों में किसी दया खाकर उसे बैठने की जगह देते है थोड़ी देर बात पता चलता है उसी ने आपका सामान गायब कर दिया .....................
रोजाना बसों में कुछ ऐसे चेहरे भी दिखाई पड़ते है जिन्हें आप जानते तो नहीं है पर उनकी एक तस्वीर जेहन में बसी होती है .
वे चेहरे होते तो अनजान है लेकिन उनकी एक पहचान कंही न कंही हमारे मन में जरुर होती है जो अगर  एक दो  दिन न दिखाई पड़े तो मन ही मन हम सोचते है वह सुरत कहा गई जो रोज दिखाई पड़ती थी ...................
शायद इंसान के इसी स्वभाव के कारण उसे इंसान कहते है और इसे  ही इंसानियत कहते है जो अभी भी दुनिया में है .............

इलेक्ट्रानिक प्रमाण पत्र और छात्र

सरकार का यह निर्णय की प्रमाण पत्र ऑनलाइन होंगे बहुत ही सराहनीय  है .क्यूकि प्रमाण पत्र एक बेरोजगार छात्र की पूर्ण सम्पति होती है जिसके अभाव में उसके सभी काम रुक जाते है ....................................
यदि वह चोरी हो जाए तो उसकी मुसीबत का अंदाजा लग सकता है ....................स्थिति तब और खराब हो जाती है जब किसी आवेदन पत्र  में प्रमाण पत्र की फोटो कापी को अटेस्ट  करना पड़ता है क्यूकि इस स्थिति में उसे बहुत चक्कर लगाना पड़ता है ...........    

सोमवार, 11 जनवरी 2010

मौसम की मार

मौसम ने यह  कैसी करामात दिखाई है ,
इतनी भयंकर ठण्ड जो आई है ,
रजाई ,स्वेटर और शाल की बहार आई  है ,
चाय , काफी और  पराठो ने रसोई में  जगह  बनाई है ,
नहाने और  पानी  से हुई जो  लड़ाई है  ,
ईश्वर ने गरीबो पर यह कैसे कहर बरसाई है,
ठंडी ने उनकी जिन्दगी नरक बनाई है ,
पेट तो ख़ाली था ही मौत भी सामने जो आई है ,
हाय    रे बेबसी जो अपनी मुझे समझ आई है ,
चाह करके भी कुछ न कर सकी ऐसी मज़बूरी आई है ,
काश कुछ कर  सकती ऐसा मै सौभाग्य मै पाऊ
उनकी परेशानिया कुछ कम हो इससे मै धन्य हो जाऊ.
un

शनिवार, 2 जनवरी 2010

क्या कंहू परीक्षा है

क्या कंहू परीक्षा है
जिसके प्रति मेरी अनिच्छा है
पिछले साल के अध्धयन की समीक्षा है
एक नौकरी और धन की प्रतीक्षा है
जो कभी खत्म न हो ऐसी इच्छा है
अपने अस्तित्व की करनी जो रक्षा है
क्या कंहू परीक्षा है