चमचमाती दुकाने
ग्राहकों को लुभाते दुकानदार
चौतरफा रोशनी ही रोशनी है ......
जगमग सड़के ......
दुकाने जो बेच रही है,
जीते जागते इन्सान को ,
इन्सान, हाड़ मांस का मानव
उसका अपना खून,
दुकानदार है लड्केवाला ,
और खरीदार है लडकीवाला,
लड़की का पिता बाजार में सोचता है .......
अपनी हैसियत के बारे में ...
हैसियत उसकी कम है तो,
वह कैसे ? कैसे ?अपनी लड़की
के लिए खुशिया खरीदेगा !
लड़की जो देख रही है सब कुछ ,
कुछ कह नहीं सकती ,
पिता की मजबूरी को देख,
आँखों में आंसू आते है !
रोती है अपने लड़की होने पर ,
लेकिन क्या करे ?
उसके हाथ बंधे है पिता की इज्जत से,
पिता,समाज में क्या कहेगे ?
माँ की आशाए,
उसे विदा करने की,
उसका क्या होगा ?
इसलिए ये बाजार लगा ही रहेगा ......
एक गली जहाँ मुड़ती है,वहा रुक कर एक बार हम सोचते हैं अपने,अपनों और दुनिया के बारे में ...........,बस यही कुछ बाते आपसे बाँटना चाहती हूँ ..........

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010
गुरुवार, 8 अप्रैल 2010
छत्तीसगढ़ में नरसंहार
छतीसगढ़ के दंतेवाडा में नक्सलियों द्वारा ७६ जवानो की हत्या कर दी गई .छत्तीसगढ़ में हुआ यह अब तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला है .ये ७६ जवान संख्या मात्र नहीं है बल्कि यह जीते जागते इन्सान थे जो नक्सलियों का शिकार हुए ..उन जवानो के परिजनों की दशा का अनुमान लगाया जा सकता है .ये सी आर प़ी ऍफ़ के जवान अपनी रोजी रोटी के लिए और देश की रक्षा के लिए किसी भी तरह का जोखिम उठाने को तैयार हो जाते है .नक्सलियों द्वारा किया यह हमला आपरेशन ग्रीन हंट के विरोध में था.
नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा को इसलिए चुना क्यूंकि वंहा की दुर्गम भोगौलिक परिस्थितिया उनके लिए लाभदायक थी .नक्सली उस क्षेत्र के चप्पे चप्पे से वाकिफ होते है .इसके आलावा दंतेवाडा तीन ओर से उड़ीसा आंध्र प्रदेश और महारास्ट्र से घिरा हुआ है जिससे नक्सली हमले के बाद भागने में सफल होंगे .इसके विपरीत जवानो को उन जंगलो के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती है .
इसे नक्सलियों का प्रतिवाद कहा जा सकता है .उन्होंने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को चुनौती है भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के यह एक बड़ी घटना है .सरकार को इन घटनाओ से सबक लेते हुए आगे उचित रणनीति बनाकर इस समस्या को हल करना चाहिए .दंतेवाडा की इस घटना ने यह साबित कर दिया है इस समस्या को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है .
दंतेवाडा की घटना ने भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र की असफलता और इस मसले पर केंद्र और सरकार के बीच तालमेल के अभाव को सामने ला दिया है .यदि इसे देश में एक सामाजिक समस्या के रूप देखा जाता है तो इसका दूसरा पहलू यह है की राज्य सरकारों का ढुलमुल रवैया भी इसके लिए जिम्मेदार है .कई बार राज्य के बड़े नेता इन नक्सलियों के साथ सहानुभूति पूर्ण बर्ताव करते है बदले में उन्हें वोट मिलते है .राज्यों के बीच सहयोग के अभाव में अभाव में नक्सली एक राज्य में वारदात को अंजाम दे दुसरे राज्य में पलायन कर जाते है जिससे उनके खिलाफ कारवाई करना मुश्किल हो जाता है.
अब वक्त आ गया है सरकार एक ऐसे योजना बनाए जिससे इस समस्या को खत्म किया जा सके .
नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा को इसलिए चुना क्यूंकि वंहा की दुर्गम भोगौलिक परिस्थितिया उनके लिए लाभदायक थी .नक्सली उस क्षेत्र के चप्पे चप्पे से वाकिफ होते है .इसके आलावा दंतेवाडा तीन ओर से उड़ीसा आंध्र प्रदेश और महारास्ट्र से घिरा हुआ है जिससे नक्सली हमले के बाद भागने में सफल होंगे .इसके विपरीत जवानो को उन जंगलो के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती है .
इसे नक्सलियों का प्रतिवाद कहा जा सकता है .उन्होंने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को चुनौती है भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के यह एक बड़ी घटना है .सरकार को इन घटनाओ से सबक लेते हुए आगे उचित रणनीति बनाकर इस समस्या को हल करना चाहिए .दंतेवाडा की इस घटना ने यह साबित कर दिया है इस समस्या को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है .
दंतेवाडा की घटना ने भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र की असफलता और इस मसले पर केंद्र और सरकार के बीच तालमेल के अभाव को सामने ला दिया है .यदि इसे देश में एक सामाजिक समस्या के रूप देखा जाता है तो इसका दूसरा पहलू यह है की राज्य सरकारों का ढुलमुल रवैया भी इसके लिए जिम्मेदार है .कई बार राज्य के बड़े नेता इन नक्सलियों के साथ सहानुभूति पूर्ण बर्ताव करते है बदले में उन्हें वोट मिलते है .राज्यों के बीच सहयोग के अभाव में अभाव में नक्सली एक राज्य में वारदात को अंजाम दे दुसरे राज्य में पलायन कर जाते है जिससे उनके खिलाफ कारवाई करना मुश्किल हो जाता है.
अब वक्त आ गया है सरकार एक ऐसे योजना बनाए जिससे इस समस्या को खत्म किया जा सके .
शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010
बूढ़ा पेड़
बूढ़ा पेड़
नीम का पेड़
खड़ा है बरसों से
अडिग, बेफिक्र
बस देखता है सबको
गिलहरियों को जो
दौड़ रही है न जाने क्यों ?
शायद फितरत है उनकी
चिड़िया जो मगन है खुद में,
उन्हें परवाह नहीं इस बूढ़े की
पेड़ तो बस खड़ा है चुपचाप
वह बच्चो को बढते,
उसे जवान होते ,
माँ की ममता और
जीवन संगिनी के साथ रिश्तो को बनाते
उन्हें सम्भालते देख रहा है,
सोचता है कभी इस बूढ़े पेड़
की ओर कोई देखे !
कोई देखे जिससे वह
कह सके अपने मन की बात,
लेकिन कौन सुनेगा उसके मन की बात ?
इस भागमभाग जिन्दगी में
इतना समय है किसके पास ?
नीम का पेड़
खड़ा है बरसों से
अडिग, बेफिक्र
बस देखता है सबको
गिलहरियों को जो
दौड़ रही है न जाने क्यों ?
शायद फितरत है उनकी
चिड़िया जो मगन है खुद में,
उन्हें परवाह नहीं इस बूढ़े की
पेड़ तो बस खड़ा है चुपचाप
वह बच्चो को बढते,
उसे जवान होते ,
माँ की ममता और
जीवन संगिनी के साथ रिश्तो को बनाते
उन्हें सम्भालते देख रहा है,
सोचता है कभी इस बूढ़े पेड़
की ओर कोई देखे !
कोई देखे जिससे वह
कह सके अपने मन की बात,
लेकिन कौन सुनेगा उसके मन की बात ?
इस भागमभाग जिन्दगी में
इतना समय है किसके पास ?
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