मेरा मन
वह मन जो भीतर है मेरे,
सोचती हूँ , मै नहीं हूँ ........
केवल मेरा मन है ........
वही मन जो कहता है मुझसे,
बोलता है मन मेरा
कर वही जो मै कहता हूँ,
आह ! काश मै कर पाती,
सुन पाती उसकी इच्छाओ को,
कैसे समझाउं उसे ........
मन,.... मेरा मन
दुखी,उदास ,हतास और निराश है .
क्या करूँ ?
उसे कैसे मनाऊँ ?
मनाऊँ भी तो कैसे ?
मेरे तर्कों को नहीं सुनता है ,
कहता है ! तुम यंत्र मत बनो ....
उसे कैसे समझाऊँ ?
यह दुनिया तो एक मशीन है ,
और मशीनी भाषा समझती है,
कैसे समझेगी ?मेरे मनोभावों को .....
मेरा मन शांत हो जाता है ,
यह सुनकर .......
और मै पहले से भी ज्यादा बेचैन,
बेचैन और निरुतरित,
क्यूंकि फिर मेरा मन उदास है !
(फोटो
http://fineartamerica.com/featured/nostalgia-mirjana-gotovac.html से साभार )