रास्ते ,ये रास्ते
ये अंतहीन रास्ते ......
जिन पर निकल पड़ी मै
बिना किसी के साथ के ,
वो साथ ही क्या साथ है .........
जो राह में ही छोड़ दे ,
उस साथ को मै छोड़ दूँ
जो साथ मेरा छोड़ दे ........
एक गली जहाँ मुड़ती है,वहा रुक कर एक बार हम सोचते हैं अपने,अपनों और दुनिया के बारे में ...........,बस यही कुछ बाते आपसे बाँटना चाहती हूँ ..........
सोमवार, 31 मई 2010
रविवार, 30 मई 2010
सपने
मेरे सपने
काली अँधेरी रातो में,
सबके सोने पर
जागते सपने
सपने ,पानी ही पानी है .........
पहाड़ और ऊंचाईयां है
सीढिया है ....
मै उनमे घूम रही हूँ ,खो गई हूँ .........
सबसे दूर ,सब रिश्तो से दूर
जैसे अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही हूँ .......
सपने ,डराते सपने ,रुलाते सपने
रोमांचित करते ,अहसास दिलाते ,
गुदगुदाते सपने
उस अहसास के सपने जो
बरसों नहीं भूलते ,
हसीन सपने ,सपनों में
कानो में गूंजती है ,
आवाजे ,वे आवाजे न जाने
कीसकी है ,इश्वर या अंतरात्मा
न जाने क्या ?
जो भविश्य को अपने में समाये
कहते है ,जिनसे मै डरती हूँ ..........
कि अगर वह सच हुए तो ........
मै बिखर जाउंगी ,टूट जाउंगी
लेकिन होगा तो वही जो लिखा है,
क्या कहूँ बस ऐसे ही है मेरे सपने .............
काली अँधेरी रातो में,
सबके सोने पर
जागते सपने
सपने ,पानी ही पानी है .........
पहाड़ और ऊंचाईयां है
सीढिया है ....
मै उनमे घूम रही हूँ ,खो गई हूँ .........
सबसे दूर ,सब रिश्तो से दूर
जैसे अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही हूँ .......
सपने ,डराते सपने ,रुलाते सपने
रोमांचित करते ,अहसास दिलाते ,
गुदगुदाते सपने
उस अहसास के सपने जो
बरसों नहीं भूलते ,
हसीन सपने ,सपनों में
कानो में गूंजती है ,
आवाजे ,वे आवाजे न जाने
कीसकी है ,इश्वर या अंतरात्मा
न जाने क्या ?
जो भविश्य को अपने में समाये
कहते है ,जिनसे मै डरती हूँ ..........
कि अगर वह सच हुए तो ........
मै बिखर जाउंगी ,टूट जाउंगी
लेकिन होगा तो वही जो लिखा है,
क्या कहूँ बस ऐसे ही है मेरे सपने .............
बुधवार, 12 मई 2010
हमारी बात - एक कविता
बात उस तंत्र की जो है लोकतंत्र ,
लोगो का तंत्र जंहा लोग हँ ऊँची पहुँच के ,
बड़े रसूख वाले जिन्हें परवाह नहीं पिछडो की ,
शोषितों की परवाह नहीं ,
जो नित नए कारनामे करते है ,
और अपने ऊँची पहुँच से छिपाते है ,
मंदिरों जा अपना पाप धोते है ,
और साफ सुथरे दिखाई देते है ,
तो साधो उनकी की भी बात रखते है ,
कहते है उनके बात ,
साधो सुनो हमारी बात
रविवार, 9 मई 2010
मदर्स डे
आज मदर्स डे है .चारो तरफ गहमागहमी है बाजार में तरह तरह के तोहफों से दुकाने सजी है .लोग इस अवसर को अपनी इच्छा अनुसार मना भी रहे है .........खैर इसके इतिहास तथा इसे मनाने के औचित्य तथा अनौचित्य पर न जाकर देश में माँ की दशा पर गौर करे तो ज्यादा बेहतर होगा ..............
आजादी के लगभग साठ बरसों बाद भी भारत में स्वास्थ्य सुविधाओ की दशा ठीक नहीं है यह बात छुपी नहीं है .शहर हो या गाँव अस्पतालों के नाम पर कुछ ही जगहे मिलेगी .और उनमे भी हर मरीज अपनी बारी का इंतजार करता हुआ असहाय दिखाई देगा.इसके अलावा जब बात हम अपनी आधी आबादी की करते है तो उसे ये भी नसीब नहीं होता.
क्यूंकि वह तो औरत है और उसका धर्म है दर्द सहना ,पिसना और चुप रहना.
इन्ही कारणों से भारत में मातृव मृत्यु दर कम नहीं हो रही है .देश में प्रसव के दौरान महिलाओ की मृत्यु दर काफी ऊँची है .भारत में माता मृत्यु अनुपात १००,००० प्रसव पर २५४ है .केरल में यह ९५ है तो असम में ४८० है.यह इस महाद्वीप का सबसे ख़राब अनुपात है, बांग्लादेश व् पाकिस्तान से भी ख़राब. इसे और आसानी से समझना हो तो ऐसे जान लीजिये कि भारत में हर साल ६५,०००० महिलाये प्रसव के दौरान दम तोडती है .यानि हर आठवे मिनट में बच्चे को जन्म देते समय एक महिला की मौत हो जाती है .
इनमे से ५०% मौते रक्त स्राव और संक्रमण के कारण होती है . अफ़सोस जंक तथ्य यह है कि भारत में आधे प्रसवो में कोई स्वास्थ्यकर्मी मौजूद नहीं होता. ये तथ्य औरत का जीवन कितने संकट में है इसकी भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है .माँ की मौत के बाद शिशु के मरने सम्भावना बढ़ जाती है .और अगर शिशु बच भी जाए तो वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्य्थ हो उसकी सम्भावनाये बहुत कम होती है .
प्रसव के दौरान किसी स्त्री की मौत न केवल परिवार के विपदा होती है बल्कि यह एक सामाजिक समस्या बन उभरती है .माँ की मौत से पिता के ऊपर जिम्मेदारी बढती है और इससे पूरा परिवार प्रभावित हो समाज पर भी असर डालता है .
यह तो बात हुई प्रसव के दौरान काल के गल में जाने वाली माओ की. अब उनकी बात करते है जो अपनी कोख किराये पर देती है जी हाँ यहाँ बात हो रही है सैरोगेट मदर की .वह माँ जो अपने बच्चे को नौ महीने
पेट में रख तमाम तकलीफे उठाती है और फिर अपने कलेजे के टुकड़े को किसी और को सौपती है न जाने इसके पीछे उसकी क्या मज़बूरी होती है .यहा उसका दैहिक और मानसिक दोनों शोषण होता है .लेकिन हमारे देश इसके लिए उचित कानून का अभाव है जो आवश्यकता पड़ने पर उसे इंसाफ दिला सके ....................
तो क्या तथाकथित मदर्स डे पर इन अभागन के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है ?क्या उन्हें उनका अधिकार नहीं मिलना चाहिए ? इस अवसर इनकी बात हो तभी देश का हर बचा खुश हो मदर्स डे मना पायेगा ..............
आजादी के लगभग साठ बरसों बाद भी भारत में स्वास्थ्य सुविधाओ की दशा ठीक नहीं है यह बात छुपी नहीं है .शहर हो या गाँव अस्पतालों के नाम पर कुछ ही जगहे मिलेगी .और उनमे भी हर मरीज अपनी बारी का इंतजार करता हुआ असहाय दिखाई देगा.इसके अलावा जब बात हम अपनी आधी आबादी की करते है तो उसे ये भी नसीब नहीं होता.
क्यूंकि वह तो औरत है और उसका धर्म है दर्द सहना ,पिसना और चुप रहना.
इन्ही कारणों से भारत में मातृव मृत्यु दर कम नहीं हो रही है .देश में प्रसव के दौरान महिलाओ की मृत्यु दर काफी ऊँची है .भारत में माता मृत्यु अनुपात १००,००० प्रसव पर २५४ है .केरल में यह ९५ है तो असम में ४८० है.यह इस महाद्वीप का सबसे ख़राब अनुपात है, बांग्लादेश व् पाकिस्तान से भी ख़राब. इसे और आसानी से समझना हो तो ऐसे जान लीजिये कि भारत में हर साल ६५,०००० महिलाये प्रसव के दौरान दम तोडती है .यानि हर आठवे मिनट में बच्चे को जन्म देते समय एक महिला की मौत हो जाती है .
इनमे से ५०% मौते रक्त स्राव और संक्रमण के कारण होती है . अफ़सोस जंक तथ्य यह है कि भारत में आधे प्रसवो में कोई स्वास्थ्यकर्मी मौजूद नहीं होता. ये तथ्य औरत का जीवन कितने संकट में है इसकी भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है .माँ की मौत के बाद शिशु के मरने सम्भावना बढ़ जाती है .और अगर शिशु बच भी जाए तो वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्य्थ हो उसकी सम्भावनाये बहुत कम होती है .
प्रसव के दौरान किसी स्त्री की मौत न केवल परिवार के विपदा होती है बल्कि यह एक सामाजिक समस्या बन उभरती है .माँ की मौत से पिता के ऊपर जिम्मेदारी बढती है और इससे पूरा परिवार प्रभावित हो समाज पर भी असर डालता है .
यह तो बात हुई प्रसव के दौरान काल के गल में जाने वाली माओ की. अब उनकी बात करते है जो अपनी कोख किराये पर देती है जी हाँ यहाँ बात हो रही है सैरोगेट मदर की .वह माँ जो अपने बच्चे को नौ महीने
पेट में रख तमाम तकलीफे उठाती है और फिर अपने कलेजे के टुकड़े को किसी और को सौपती है न जाने इसके पीछे उसकी क्या मज़बूरी होती है .यहा उसका दैहिक और मानसिक दोनों शोषण होता है .लेकिन हमारे देश इसके लिए उचित कानून का अभाव है जो आवश्यकता पड़ने पर उसे इंसाफ दिला सके ....................
तो क्या तथाकथित मदर्स डे पर इन अभागन के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है ?क्या उन्हें उनका अधिकार नहीं मिलना चाहिए ? इस अवसर इनकी बात हो तभी देश का हर बचा खुश हो मदर्स डे मना पायेगा ..............
शनिवार, 8 मई 2010
मेरा मन
मेरा मन
वह मन जो भीतर है मेरे,
सोचती हूँ , मै नहीं हूँ ........
केवल मेरा मन है ........
वही मन जो कहता है मुझसे,
बोलता है मन मेराकर वही जो मै कहता हूँ,
आह ! काश मै कर पाती,
सुन पाती उसकी इच्छाओ को,
कैसे समझाउं उसे ........
मन,.... मेरा मन
दुखी,उदास ,हतास और निराश है .
क्या करूँ ?
उसे कैसे मनाऊँ ?
मनाऊँ भी तो कैसे ?
मेरे तर्कों को नहीं सुनता है ,
कहता है ! तुम यंत्र मत बनो ....
उसे कैसे समझाऊँ ?
यह दुनिया तो एक मशीन है ,
और मशीनी भाषा समझती है,
कैसे समझेगी ?मेरे मनोभावों को .....
मेरा मन शांत हो जाता है ,
यह सुनकर .......
और मै पहले से भी ज्यादा बेचैन,
बेचैन और निरुतरित,
क्यूंकि फिर मेरा मन उदास है !
(फोटो http://fineartamerica.com/featured/nostalgia-mirjana-gotovac.html से साभार )
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