एक गली जहाँ मुड़ती है,वहा रुक कर एक बार हम सोचते हैं अपने,अपनों और दुनिया के बारे में ...........,बस यही कुछ बाते आपसे बाँटना चाहती हूँ ..........
सोमवार, 31 मई 2010
रास्ते
रास्ते ,ये रास्ते ये अंतहीन रास्ते ...... जिन पर निकल पड़ी मै बिना किसी के साथ के , वो साथ ही क्या साथ है ......... जो राह में ही छोड़ दे , उस साथ को मै छोड़ दूँ जो साथ मेरा छोड़ दे ........
18 टिप्पणियां:
एक एक शब्द आत्म विश्वास से भरपूर प्रज्ञा जी। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बेहतरीन प्रस्तुति... भावनाओं को शब्द रुप बहुत अच्छे से दिया है आपनें... बधाई.
वक्त के लिहाज से सच भी है और सही भी जैसे को तैसा तो मिलना चाहिए - अहसासों की सार्थक प्रस्तुति
gazab..
gusse me chli kalam...lagta hai
bahut badhiya...
बहुत सुन्दर!
बहुत सही रस्ता चुना है।
पर हमारे रास्ते में वर्ड वेरिफ़िकेशन का रोड़ा क्यों?
बहुत सही रस्ता चुना है।
पर हमारे रास्ते में वर्ड वेरिफ़िकेशन का रोड़ा क्यों?
मनप्रसन्न।
...कम शब्दों में सुन्दर रचना !!! -------- और कोई आपके साथ हो ना हो .....................................ये सभी ब्लॉग साथी आपके हर पल साथ है !
स्वालम्बी होना बहुत ज़रुरी है,,
आपकी इन पंक्तियाँ ने सब कुछ कह दिया.
आत्मविश्वास से भरपूर ...
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
atulniy
There is no any post between 2 month.Where are you?
who r u ? kya mai apko janti hun .......
agr ha to plz bataye
गागर में सागर!
और क्यूँ ना कुछ नया लिखें?
I really like your poem and i am also interested in editorial and blog on some serious issues.thanks for such a nice poem great
रास्ते ही मंजिलों के काफिये होते सदा
सार्थक प्रस्तुति
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