रविवार, 9 अगस्त 2009

रविवार

रविवार का मतलब सन्डे ,सन्डे यानि छुट्टी ,छुट्टी उस काम की जो एक वर्ग विशेष करता है ,वह काम जो जनता से जनता को और जनता के लिए किया जाता है ,क्यूंकि यंहा लोकतंत्र है ,लोकतंत्र जो राजनीतिज्ञओ के बेठ्को में ,संसद
के गलियारों में ,नेताओ की रैलिओं में ,नेताओ के डिजैनेर धोती कुर्तो में ,हर पांच साल बाद होने वाले आम चुनाव और विधानसभा चुनाव में दिखाई पड़ता है ,यह लोकतंत्र क्या देश के उन करोडो भूखे नगे गरीब लोगो को समझ आ सकता है जिनका जीवन दर्शन ही रोटी के इर्द गिर्द दिखाई पड़ता है ,जिन्हें अगर एक पहर रोटी मिलती है तो दुसरे पहर की कोई गारंटी नही होती ,उनके लिए और उन गरीब मजदूरों के जो थोड़े से पैसो के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करते है ,उनको इस के कायदे कानूनों से भला क्या सरोकार ,उन्हें उस सन्डे की छुटी से क्या जो हम मनाते है ,हमारा संडे तो चाय की चुस्कियों के साथ किसी बडे अख़बार का रविवारीय विशेषांक पड़ते हुए शुरू करते है ,लेकिन उनका क्या जो एक वक्क्त की रोटी के तरस रहे है ,उनके उस भूख जो सडको ,चौराहों के इर्द ग्रिद दिखाई पड़ती है

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