रविवार, 17 जनवरी 2010

बचपन

एक दिन मैंने बचपन देखा,
कडकडाती ठंड में ठंड से बेपरवाह देखा,
धुल से सने हाथो में कुछ पत्थर देखा,
इस भीड़ भाड़ की जिन्दगी से तटस्थ देखा,
माँ के आंचल से दूर अपने में खोया देखा,
थोड़ी से आहट डरते सकुचाते देखा,
मेरे पास जाने पर दूर हटते देखा,

जिन्दगी की सच्चाइयो से बेपरवाह देखा

5 टिप्‍पणियां:

kulwant Happy ने कहा…

हकीकत के मार्ग से गुजरती शब्दों की बस

प्रज्ञा पाण्डेय ने कहा…

bahut bahut dhnyvad

Dinbandhu Vats ने कहा…

childhood is most enjoying stage of life .But your depiction of child is more enjoying.children are free from any constrain.you have mentioned correctly.

Unknown ने कहा…

बहुत सही लिखा है ..

dipayan ने कहा…

बहुत खूबी से ज़िन्दगी से वाकिफ़ कराया । सुन्दर और संवेदनशील कविता ।