गुरुवार, 21 जनवरी 2010

पढने की कोई उम्र नहीं होती

पढने की कोई उम्र नहीं होती,जी हा किसी ने सच ही कहा है कि पढने कि कोई उम्र नहीं होती लेकिन अब पढने की इच्छा नही होती .................,क्या करू अब टाइम नही है .................
   ..........यह बात मध्य प्रदेश के छोटे से गाँव से आई घरेलू नौकरानी सीता राशन कार्ड से जुड़े किसी कागजात पर अंगूठा लगते हुए कहती है.........अधेड़ उम्र की सीता से यह सवाल पूछने पर की वह अपने गाँव में खेती क्यूँ नही करती वह कहती है खेती में क्या रखा है मेहनत करो और टाइम से बारिश नहीं हुई तो कर्ज लेना पड़ेगा और समय से कर्ज चुकता नहीं करने पर हमारी दशा और खराब हो जाएगी .इसलिए हम यहा आ गये यहाँ कम से कम मेहनत करने से पैसे तो मिलते है.........................
............खुद अनपढ़ है लेकिन उनकी कोशिश है की उनकी बेटिया जरुर पढ़े, लेकिन पढाये भी तो कहा क्यूंकि अच्छी शिक्षा के लिए पैसे नहीं है और सरकारी स्कुलो में पढाई अच्छी नही होती.उनके अनुसार कक्षा पाँच में पढने वाले बच्चो को भी कुछ नहीं आता................................और इस तरह उनकी अगली पीढ़ी भी लगभग अनपढ़ ही रह जाएगी. ....................................आज भारत की आजादी के छह दशक बाद भी स्त्री साक्षरता का ये हाल है.आज स्त्री अगर पढना भी चाहे तो परेशानियों के सामने उसकी इच्छा दम तोड़ देती है........................खेती का ये हाल है की गाँव वासी उसे घाटे का सौदा समझ शहरो की ओर पलायन कर रहे है .................... इससे शहरो के ऊपर बोझ बढ़ रहा है और शहरो में बुनियादी सुविधाओ के अभाव ने एक नई जंग छेड़ दी है ......................क्या इन मुद्दो पर सोचने की आवश्यकता नहीं है .....................

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आप ने सही कहा ,किन्तु हमें यह भी देखना चाहिए की यदि उन पढने वालो के मन में दृढ इक्छा शक्ति हो तो आजादी के ६० वें दशक में शिक्छा की ओर प्रयास कम जुरूर है किन्तु लोगो की दिलचस्पी इसमें सरकार के प्रयासों को मजबूती प्रदान करेगी

Udan Tashtari ने कहा…

मुद्दे बेहद ज्वलंत है और त्वरित विचारणीय. मशीनरिज़ को जल्द चेतना होगा. अच्छा चिंतन!

Dev ने कहा…

bahut khoob ....

Dinbandhu Vats ने कहा…

apa ki soch practical hai.lekin jab tak ptriarchical feeling hamare man mei rahegi iska smadhan nahi ho sakata.