शनिवार, 25 अगस्त 2012

सियासत की बिसात पर मौत का खेल

सियासत की बिसात पर मौत का खेल   
सियासत और इश्क के खेल में सब कुछ जायज माना जाता है। हाल ही में मीडिया की सुखिर्यां बनी फिजा और गीतिका के मामले में भी ऐसा ही कुछ दिखाई पड़ता है। गीतिका ने अपनी कम्पनी के मालिक और हरियाणा के पूर्व मंत्री से तंग आकर आत्महत्या कर ली और फिजा का सड़ा-गला मृत शरीर उसके महलनुमा घर में पाया गया। कभी अपनी खबसूरती के लिए जानी जाने वाली फिजा का अंत बहुत दुखद रहा। हमेशा लोगों की भीड़ को अपनी ओर खींचने वाली फिजा मरते समय बिल्कुल अकेली थी।

गीतिका शर्मा की स्यूसाइड की खबर आने से पहले शायद ही कोई उसे जानता हो। 23 साल की गीतिका बहुत ही कम वक्त में तरक्की की उन सीढ़ियों को पार कर गई जो बहुतों को मेहनत करने पर भी नसीब नहीं होती है। लेकिन, तरक्की और दौलत की इस चकाचौंध के पीछे के काले स्याह चेहरे को वह न जान सकी जिसने उसे मरने पर मजबूर कर दिया। गोपाल कांडा की कम्पनी एमडीएलआर में काम के दौरान कांडा और गीतिका नजदीक आए। गीतिका ने इस नजदीकी को शादी तक में बदलने की सोच ली। शायद यहीं वह गलती कर बैठी। हालांकि, कांडा को भी शादी से परहेज नहीं था। कांडा के बढ़तेgLr{ksi से गीतिका घिरती चली गई और एक दिन उसने खुद को खत्म कर लिया। ऐसा ही कुछ फिजा के साथ भी हुआ। पेशे से वकील रही फिजा उर्फ अनुराधा बाली तेज कदमों से सफलता की ओर बढ़ीं और हरियाणा की एस्सिटैंट एडवोकेट जनरल बन गईं। अपने ही राज्य के उपमुख्यमंत्री चन्द्रमोहन से प्यार किया और दुनिया के सामने अपनी मोहब्बत को कुबूल कर शादी भी की। इस शादी में चन्द्रमोहन चांद और अनुराधा फिजा बनीं। दो बच्चों के पिता चन्द्रमोहन राजनीति में ऊंची हैसियत रखते थेउन्हें फिजा का साथ ज्यादा समय तक नहीं भाया और वह फिजा से दूर हो गए। अपने चांद से यह दूरी वह सह न सकी। अकेली फिजा तन्हा रह गई और एक दिन उसके मरने की खबर आई।

राजनीति के गलियारों में केवल गीतिका और फिजा ही वह नाम नहीं हैं जो सियासत में ऊंचे रसूख वालों के साथ रहीं और वक्त के साथ मुश्किल पैदा करने पर ftUgsa मौत की नींद सुला दिया गया। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब भंवरी देवी की चर्चा चारों ओर हो रही थी। उसने भी मंत्रियों को ब्लैकमेल कर आग में हाथ डालने का काम किया तो वह मौत की नींद सो गई। इसी तरह कवियत्री मधुमिता अपनी कविता के लिए कम और अमरमणि से अपने संबंधों के लिए ज्यादा जानी जाती थी। उसने भी जब अमरमणि के बच्चे की मां बनना चाहा तो उसे भी इस दुनिया से अलविदा कर दिया गया।

ये सभी मामले दिखने में तो सीधे लगते हैं, लेकिन गौर करें तो यह गिव एंड टेक का मामला लगता है। बड़े ओहदे वाले राजनेता इन बालाओं की झोली को दौलत और शोहरत से भर देते हैं, लेकिन बदले में लेते हैं उनकी आबरू। लेकिन, यह एक तरफा मामला नहीं है|ये महिलाएं भी इस तरह के रिश्तों को अपनी मर्जी से बनाती हैं और उनकी शोहरत और ताकत का इस्तेमाल करती हैं। यह सब कुछ चुपचाप चलता रहता है, लेकिन मुश्किल तब पैदा होती है जब वह जरूरत से ज्यादा की उम्मीद करतीं हैं। कोई इस समाज के सामने खुद को स्वीकार करने की मांग करती हैं तो कोई उसके बच्चे की मां बनकर अधिकार पाना चाहती है। उनकी यही इच्छा उन्हें मौत की ओर ले जाती है और वह कई राज अपने तक समेटे हुए हमेशा के लिए सो जाती हैं।