शनिवार, 8 अगस्त 2009

वो परी

जनवरी की सुबह तक़रीबन ७ बजे वो मुझे बनारस से इलाहाबाद की पिसेंजेर ट्रेन में देखाई दी ;उस समय तापमान करीब आठ से दस डिगरी के बीच में था मैंने माँ की डांट के कारण ख़ुद को ठीक से शाल से लपेट रखा था ; वो कही चडी पर एस्टेसन मुझे याद नही ,तक़रीबन चार साल की होगी छोटे बीखरे कंधे तक बाल उनमे कुछ लटे उसके सवाले कोमल चहरे पर पड़ रही थी जीन्हें वो अपने नन्हे हाथो से समेट रही थी ,नगे पाव बाजुओ से कटी घुटने तक लाल फ्राक पहने वो मुझे अफ्रीकन माडल सी लग रही थी ,अनायास ही नजरे उसकी तरफ़ ही जा रही थी ऐसा लग रहा था मानो मै उसे कीतने सालो से जानती हु पर उसकी नज़रे भी मुझे देख रही थी पर थोडी डरी हुई सी; वो अकेली नही थी उसके साथ उसका पुरा परीवार था माँ बाप और छोटा भाई जीसे उसके बाबू ने गोद में उठा लीया था ,और माँ जीस्के हाथ में पाच रुपये का पार्लेजी बीस्कुट था वो अपने बेटे बहुत दुलार रही थी , पर वो अपनों के बीच भी अलग थी ,न ही बाबू और न ही माँ को उसकी परवाह थी वो तो ट्रेन के ठंठे फर्श पर बैठ हसरत भरी नजरो से देख रही थी की कब माँ उसे भी बीस्कुट का एक टुकडा देकर गोद में लेगी ,वो तो अपनों के बीच भी अनाथ थी ,तो उनका जो सच में अनाथ है मै उसे बीस्कुट और गरम कपडे दे सकती हु पर उस प्यार उस दुलार का क्या जो उसे उसकी जननी से चाहीए इसे तो उसके माँ और बाबू ही देगे ,

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