शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

प्रदुषण और बढती कारे




दिनोदिन बढते प्रदुषण और कारोकी बढती संख्या ने पर्यावरण को जो क्षति पहुचाई है वह देखने लायक है. वक्त बे वक्त मौसम का बदलना,कडकडाती ठंड और भयंकर गर्मी का आना इसका एक उदाहरन है.
आज किसके पास कितनी कारे और कितनी महंगी कर है यह एक सामाजिक प्रतिस्ठा का प्रश्न है .यदि प्रदुषण इसी प्रकार बढता रहा तो पेड़,पौधे एवं प्रकृति से जुड़े तमाम दृश्य इतिहास बन कर रह जायेगे.हमे अपनी जीवन शैली में सुधार करने की आवश्यकता है ताकि अपनी भावी पीढ़ी के लिए  पर्यावरण को
संरक्षित रख सके.  

5 टिप्‍पणियां:

अरविन्द शुक्ल ने कहा…

जिस गति से भारत में करें बढ़ रही है उससे तो पर्यावरण के लिए बड़ी भयावह स्थिति की कल्पना की जा सकती है ....
पहली बार आपके ब्लॉग में आया था अच्छा लगा

अरविन्द शुक्ल ने कहा…

जिस गति से भारत में कारें बढ़ रही है उससे तो पर्यावरण के लिए बड़ी भयावह स्थिति की कल्पना की जा सकती है ....
पहली बार आपके ब्लॉग में आया था अच्छा लगा

Patali-The-Village ने कहा…

पर्यावरण बारेबहुत अच्छा चित्रण| धन्यवाद

Rajiv ने कहा…

Pragya jee,very sincere feelings about our paryavaran which is being endangered by us.

S.N SHUKLA ने कहा…

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उत्कृष्ट प्रस्तुति , आभार.



कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .