आज कल देश में प्रदेशो के विभाजन की चर्चा जोरो पर है .कुछ दिनों पहले तेलेगाना को एक नया प्रदेश बनाने की बात ने जो तूल पकड़ा वह थमने का नाम नहीं ले रहा है .आन्ध्र प्रदेश की देखा देखी अन्य राज्य भी नए प्रदेश की मांग कर रहे है .उत्तर प्रदेश को जंहा तीन भागो हरित प्रदेश ,बुंदेलखंड और पूर्वांचल में विभाजित करने की मांग उठ रही है वही बिहारवासी मिथानांचल और उड़ीसा निवासी कोसल प्रदेश की बात पर अड़े है .
प्रदेशो के विभाजन का यह शोर क्या विकास हेतु है ,क्या विकास बड़े आकार में समभ्व नहीं है ,देश में अनेको राज्य बड़े आकार के बावजूद विकास के पैमाने पर खरे उतर रहे है .वर्षो पहले बड़े प्रयत्नों के बाद देश को संगठित किया जा सका है ,इस प्रकार के आन्दोलन उसे गृहयुद्ध में झोक सकते है .
विभाजन से विकास की राह सही नहीं दिखाई पड़ती क्यूकि जितना पैसा हम नए राजधानियों के विकास में लगायेगे उतने में हम उस प्रदेश के विकास के लिए संसाधन जुटा सकते है . यदि पिछड़े इलाको को उनके भू आकृति के अनुसार योजना बनाकर उसे इमानदारी से लागू करे तो आधी परेशानी वही ख़त्म हो जाएगी .सरकार यदि उस इलाके को धन दे कर परिवहन सुविधाये बडाये तो परेशानिया कम हो सकती है .
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