मै उदास हूँ,
अकेली हूँ, बिल्कुल अकेली
कोई नहीं है मेरे पास
सोचती हूँ मै ही बस अकेली
नहीं,शायद नहीं
यह जो दोपहर है, तपती दोपहर
वह भी तो है अकेली,
बिल्कुल मेरी तरह.......
कितनी ही समानताये है
मुझमे और दोपहर में
दोनों ही जल रही है........
तप रही है .......
मै भी तो जल रही हूँ
अपनी इच्छाओ और भावनाओ में ......
इच्छाए जो जीने नहीं देती
भावनाए जो अपने होने का अहसास कराती है ,
दोपहर को है शाम का इंतजार
मुझे भी तो है इंतजार
उस क्षण का जब
कोई हलचल नहीं होगी ,
मै शांत,बिल्कुल शांत ......
भावनारहित, इच्छारहित,
शायद मुक्त,बिल्कुल मुक्त
कोई बंधन नहीं है .......
उस क्षण की प्रतीक्षा में ......
6 टिप्पणियां:
बिल्कुल मेरी तरह.......
कितनी ही समानताये है
मुझमे और दोपहर में
दोनों ही जल रही है......
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
वाह !!....जवाब नहीं इस गंभीर रचना का बहुत खूब ...
भावपूर्ण है आपकी रचना . बहुत अच्छा
Dopahar ko hai shaam ka intezaar!
Gahan tatha sundar, sath-sath!
Man na padega!
Achook!
शब्दों का अदभुत संकलन ,,बहुत सुन्दर कविता
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
bahoot khoob
kunwar ji,
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