मंगलवार, 12 जनवरी 2010

दिल्ली और बसे


देश की राजधानी दिल्ली की सडको पर दौड़ती बसों की अपनी ही माया है .वे चाहे ब्लूलाइन हो या डीटीसी सबकी रफ़्तार एक सी है .दोनों को हाथ देते रहो पर नहीं रूकती न जाने क्यों उनकी लीला वो ही जाने .....................
दोनों इंसान को इंसान न समझ कर भेड़ बकरी समझती है इन्हे बसों में भरते जाओ .कभी कभी तो श्रीमान ड्राइवर महोदय की इच्छा हुई वह और बसों के साथ रेस लगाने पर उतारू हो जाते है .बेचारे पैसेंजेर की जान तब तक आफत में होती है जब तक वह अपनी मंजिल तक पहुच न जाए .........................
बेचारे पैसेंजेर के लिए मुसीबत तो तब होती है जब वह दिल्ली में नया हो बसों में उतरने और चड़ने में सफल होने पर अपने आपको को विजेता महसूस करता है .जो बसों की परेशानियों को नहीं जनता उनकी मुश्किलें और भी बड़ जाती है ...............
दिल्ली में कौन सी बस कहा मिलेगी और किस बस स्टाप पर कौन सी किस नम्बर के बस रुकेगी यह एक जनरल नालेज की बात है जिसकी जानकारी के बिना जीवन कठिन जो जाता है ................
मुश्किल तब और भी बढ़ जाती है जब आप सुबह सुबह बस में चढ़ते है और उतरने पर मोबाइल और पर्स गायब रहते है उस समय आप लूटे पिटे अपनी बेवकूफी पर हँसते हुए अपने कम में लग जाते है .कई बार हम बसों में किसी दया खाकर उसे बैठने की जगह देते है थोड़ी देर बात पता चलता है उसी ने आपका सामान गायब कर दिया .....................
रोजाना बसों में कुछ ऐसे चेहरे भी दिखाई पड़ते है जिन्हें आप जानते तो नहीं है पर उनकी एक तस्वीर जेहन में बसी होती है .
वे चेहरे होते तो अनजान है लेकिन उनकी एक पहचान कंही न कंही हमारे मन में जरुर होती है जो अगर  एक दो  दिन न दिखाई पड़े तो मन ही मन हम सोचते है वह सुरत कहा गई जो रोज दिखाई पड़ती थी ...................
शायद इंसान के इसी स्वभाव के कारण उसे इंसान कहते है और इसे  ही इंसानियत कहते है जो अभी भी दुनिया में है .............

इलेक्ट्रानिक प्रमाण पत्र और छात्र

सरकार का यह निर्णय की प्रमाण पत्र ऑनलाइन होंगे बहुत ही सराहनीय  है .क्यूकि प्रमाण पत्र एक बेरोजगार छात्र की पूर्ण सम्पति होती है जिसके अभाव में उसके सभी काम रुक जाते है ....................................
यदि वह चोरी हो जाए तो उसकी मुसीबत का अंदाजा लग सकता है ....................स्थिति तब और खराब हो जाती है जब किसी आवेदन पत्र  में प्रमाण पत्र की फोटो कापी को अटेस्ट  करना पड़ता है क्यूकि इस स्थिति में उसे बहुत चक्कर लगाना पड़ता है ...........    

सोमवार, 11 जनवरी 2010

मौसम की मार

मौसम ने यह  कैसी करामात दिखाई है ,
इतनी भयंकर ठण्ड जो आई है ,
रजाई ,स्वेटर और शाल की बहार आई  है ,
चाय , काफी और  पराठो ने रसोई में  जगह  बनाई है ,
नहाने और  पानी  से हुई जो  लड़ाई है  ,
ईश्वर ने गरीबो पर यह कैसे कहर बरसाई है,
ठंडी ने उनकी जिन्दगी नरक बनाई है ,
पेट तो ख़ाली था ही मौत भी सामने जो आई है ,
हाय    रे बेबसी जो अपनी मुझे समझ आई है ,
चाह करके भी कुछ न कर सकी ऐसी मज़बूरी आई है ,
काश कुछ कर  सकती ऐसा मै सौभाग्य मै पाऊ
उनकी परेशानिया कुछ कम हो इससे मै धन्य हो जाऊ.
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शनिवार, 2 जनवरी 2010

क्या कंहू परीक्षा है

क्या कंहू परीक्षा है
जिसके प्रति मेरी अनिच्छा है
पिछले साल के अध्धयन की समीक्षा है
एक नौकरी और धन की प्रतीक्षा है
जो कभी खत्म न हो ऐसी इच्छा है
अपने अस्तित्व की करनी जो रक्षा है
क्या कंहू परीक्षा है  

बुधवार, 30 दिसंबर 2009

नए साल का इंतजार है

नए साल का इंतजार है ,
भूख ,गरीबी और भ्रस्टाचार अपार है ,
रुचिका ,जेसिका और आरुषी की भरमार है ,
पंढेर,कोहली और राठोर की सरकार है ,
मृतको की आत्माओ को न्याय की दरकार है ,
न्यायपालिका को नारी न्यायाधीस का इंतजार है ,
गरीबो को थानों में शिकायत दर्ज होने की आस है ,
महगाई के कम होने की दरकार है ,
दिसम्बर की कडकडाती ठण्ड का अहसास है
फिर भी नए साल का इंतजार है . 






रविवार, 27 दिसंबर 2009

ब्यूटी पार्लर


ब्यूटी पार्लर शब्द अपने आप में एक संस्कृति को दिखाता है .यह संस्कृति को ही नहीं बल्कि एक प्रकार जनरेसन गैप को दिखाता है .एक हमारी दादी ,नानी और माँ की जनरेसन दूसरी हमारी .पहली को कभी इसकी जरूरत नहीं हुई पर दूसरी का इसके बगैर गुजारा नहीं है .महीने में कम से कम एक चक्कर तो लगाना ही है क्यूंकि इसके बिना हम खुद को पिछड़ा महसूस करते है .
                                         ब्यूटी पार्लर हमे कही भी गाँवो ,कस्बो और शहरो में दिख सकते है .सस्ते से सस्ते और महगे से महंगे हो सकते है .कही एसी युक्त तो कही बिना पंखे के काम चलाना पड़ता है .पर जरूरत के काम जम के करते है .अब तो दुल्हन बनने से पहले इसके चक्कर लगाने जरुरी है नहीं तो ससुराल वाले पिछड़ा समझेंगे .........................
                                           सहेली की शादी हो रिश्तेदारी के यंहा जाना हो उससे पहले थ्रेदिग,बिलिचिग और वैक्सिंग  जरुरी है .कालेज का फैयरवेळ हो या ऑफिस की पार्टी हो तैयार होने के लिए पार्लर जाना जरुरी है .......................
..............                           ................जो भी हो इस पार्लर कल्चर ने आज महिलाओ की आजादी के नए मानदंड बना दिए है .इसने उनके अंदर एक नया आत्मविश्वास पैदा किया है जो जरुरी तो नहीं लेकिन कुछ बुरा भी नहीं है .......        

शनिवार, 26 दिसंबर 2009

छोटा प्रदेश बनाम विकास

आज कल देश में प्रदेशो के विभाजन की चर्चा जोरो पर है .कुछ दिनों पहले तेलेगाना को एक नया प्रदेश बनाने की बात ने जो तूल पकड़ा वह थमने का नाम नहीं ले रहा है .आन्ध्र प्रदेश की देखा देखी अन्य राज्य भी नए प्रदेश की मांग कर रहे है .उत्तर प्रदेश को जंहा तीन भागो हरित प्रदेश ,बुंदेलखंड और पूर्वांचल में विभाजित करने की मांग उठ रही है वही बिहारवासी मिथानांचल और उड़ीसा निवासी कोसल प्रदेश की बात पर अड़े है .
प्रदेशो के विभाजन का यह शोर क्या विकास हेतु है ,क्या विकास बड़े आकार में समभ्व नहीं है ,देश में अनेको राज्य बड़े आकार के बावजूद विकास के पैमाने पर खरे उतर रहे है .वर्षो पहले बड़े प्रयत्नों के बाद देश को संगठित किया जा सका है ,इस प्रकार के आन्दोलन उसे गृहयुद्ध में झोक सकते है .
विभाजन से विकास की राह  सही नहीं दिखाई पड़ती क्यूकि जितना पैसा हम नए राजधानियों के विकास में लगायेगे उतने में हम उस प्रदेश के विकास के लिए संसाधन जुटा सकते है .  यदि पिछड़े इलाको को उनके भू आकृति के अनुसार योजना बनाकर उसे इमानदारी से लागू करे तो आधी परेशानी वही ख़त्म हो जाएगी .सरकार यदि उस इलाके को धन दे कर परिवहन सुविधाये बडाये तो परेशानिया कम हो सकती है .