सोमवार, 11 जनवरी 2010

मौसम की मार

मौसम ने यह  कैसी करामात दिखाई है ,
इतनी भयंकर ठण्ड जो आई है ,
रजाई ,स्वेटर और शाल की बहार आई  है ,
चाय , काफी और  पराठो ने रसोई में  जगह  बनाई है ,
नहाने और  पानी  से हुई जो  लड़ाई है  ,
ईश्वर ने गरीबो पर यह कैसे कहर बरसाई है,
ठंडी ने उनकी जिन्दगी नरक बनाई है ,
पेट तो ख़ाली था ही मौत भी सामने जो आई है ,
हाय    रे बेबसी जो अपनी मुझे समझ आई है ,
चाह करके भी कुछ न कर सकी ऐसी मज़बूरी आई है ,
काश कुछ कर  सकती ऐसा मै सौभाग्य मै पाऊ
उनकी परेशानिया कुछ कम हो इससे मै धन्य हो जाऊ.
un

कोई टिप्पणी नहीं: