आखिर आ ही गया बसंत,
धुंध सी है छंट गई ,
रोशनी है आ गई ,
चमकती धूप है खिल रही ,
खिल रही है कलि -कलि,
कूक रही है कोयल,
पेड़ो ने भी पुराने कपडे उतार,
नए धारण करने की है तैयारी,
पतझड़ है उसी का परिणाम ,
चारो तरफ है हर्ष और उल्लास,
आशा का है संचार ,
पिघल रहे है वे अहसास,
जो जमे थे महीनो से,
गर्माहट भी है आ गई,
फागुनी बयार ने अपनी कला है दिखाई
सभी उत्सव मनाने की है तैयारी में,
उत्सव,बसंतोत्सव तो चलिए हम भी,
उस उस्तव में शामिल हो जिसका हमे ,
इंतंजार था, बसंतोत्सव...........................
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
"पिघल रहे है वे अहसास,
जो जमे थे महीनो से"
अच्छे शब्द - सार्थक प्रयास शुभकामनाएं
bahut badhiya rachna .....
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