बूढ़ा पेड़
नीम का पेड़
खड़ा है बरसों से
अडिग, बेफिक्र
बस देखता है सबको
गिलहरियों को जो
दौड़ रही है न जाने क्यों ?
शायद फितरत है उनकी
चिड़िया जो मगन है खुद में,
उन्हें परवाह नहीं इस बूढ़े की
पेड़ तो बस खड़ा है चुपचाप
वह बच्चो को बढते,
उसे जवान होते ,
माँ की ममता और
जीवन संगिनी के साथ रिश्तो को बनाते
उन्हें सम्भालते देख रहा है,
सोचता है कभी इस बूढ़े पेड़
की ओर कोई देखे !
कोई देखे जिससे वह
कह सके अपने मन की बात,
लेकिन कौन सुनेगा उसके मन की बात ?
इस भागमभाग जिन्दगी में
इतना समय है किसके पास ?
8 टिप्पणियां:
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत खूब ....पेड़ की भावनओं को बहुत गहराई से प्रस्तुत किया है .
अडिग, बेफिक्र.....यहाँ बेफिक्र और अंत में सोचता है....कि.....विरोधाभास है रचना में....बेफिक्र शब्द के बदले बेबस या कुछ और लगा कर देखें.
निवेदन मात्र है.
रचना आपकी है और बेहतरीन है.
आपकी कविता पढ़ कर राही मासूम राजा के नीम का पेड़ की याद आ गई।हमें पेड़ों के लिए भी समय निकालना होगा,उनका दर्द समझना होगा,उन्हे बचाना होगा
bahut khoob!!!
सवेंदनशील रचना अच्छी लिखी हुई। सच है पेड़ के दर्द को कौन जाने जैसे बुढे आदमी के दर्द को कौन जाने? कुछ ऐसा ही हमने भी लिखा था पेड़ के दर्द पर।
पेड़ की भावनओं को बहुत गहराई से प्रस्तुत किया है ...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
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