औरते,वो औरते
चटक रंगों की तरह
रंग बिरंगी
जिन्हें देख मन सोचता है ........
क्या अंतर है ?मुझमे और उनमे
मै भी तो उन्ही की तरह ही एक स्त्री हूँ..........
उन्ही की तरह बन्धनों से जकड़ी
और परेशानीयों से घिरी हुई ........
वो मेरी तरह ही हाड़ मांस की बनी है,
मेरी ही तरह दर्द को झेलती है
पर उन्हें लोग गन्दी औरते क्यों कहते है?
लोग, तथा कथित लोग ,
सभ्य समाज का मुखौटा पहने हुए,
जो दिन में उन्हें गन्दी औरतो के
विशेषण से विभूषित करते है .......
और रात उनकी चरणों में खुद को
समर्पित करते है .......
शायद यही समाज है .......
इसे समाज कहते है
दोहरे चेहरे का समाज .............
9 टिप्पणियां:
अरे वाह !!!....बहेतरीन प्रस्तुति ...बहुत सही कहा आपने ''दोहरे चहेरे का समाज ''
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बिल्कुल सही कहा..........ये समाज हमेशा ही दोहरे मापदण्ड अपनाता है .
bahut bebaki ke sath tippani ki hai aapne.BADHAI aapko
सही कहा आपने . समाज अपनी गलतियों का ठीकरा स्त्री के सर ही फोड़ता है .गन्दा होता है खुद समाज और भुगतती स्त्री है .
kash ye soch hamare samaj ke un vargo me bhi hota jo un safed poso ko samne lane ke sthan par unhe dhakte hai.aap aise hi likhti rahe...
दोहरे चेहरे वाला समाज,लेकिन सब पर ये बात नहीं लागू होती है,कही न कही तो सच्चाई है. आपका क्या कहना है.
VIKAS PANDEY
www.vicharokadarpan.blogspot.com
ye hi humae desh ki badkismati hai ki yahapar dhohare samaaj ka janam ho raha hai
from http://aatejate.blogspot.com
बेहतरीन प्रस्तुति
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