एक दिन मैंने बचपन देखा,
कडकडाती ठंड में ठंड से बेपरवाह देखा,
धुल से सने हाथो में कुछ पत्थर देखा,
इस भीड़ भाड़ की जिन्दगी से तटस्थ देखा,
माँ के आंचल से दूर अपने में खोया देखा,
थोड़ी से आहट डरते सकुचाते देखा,
मेरे पास जाने पर दूर हटते देखा,
जिन्दगी की सच्चाइयो से बेपरवाह देखा
5 टिप्पणियां:
हकीकत के मार्ग से गुजरती शब्दों की बस
bahut bahut dhnyvad
childhood is most enjoying stage of life .But your depiction of child is more enjoying.children are free from any constrain.you have mentioned correctly.
बहुत सही लिखा है ..
बहुत खूबी से ज़िन्दगी से वाकिफ़ कराया । सुन्दर और संवेदनशील कविता ।
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