गुरुवार, 28 जनवरी 2010

बेघर

बेघर जिनका कोई घर नहीं .......,वैसे लोग जिनके सर पर कोई छत नहीं ........,ऐसी कोई जमीन नहीं जिसे वह अपना कह सके ....,बस ऐसे ही कभी यहाँ तो कभी वहा ...........कभी फुटपाथ पर तो कभी रेलवे स्टेशन पर .......बस ऐसी ही है वो ...................
                                 इस कल्पना से ही हम और आप जैसे लोग सिहर उठते है कि एक दिन ऐसा हो कि हमारा कोई घर न हो कहा जायेगे हम?......इस स्थिति को वह रोज झेलते है ............कैसी विडंबना है यह ......और कैसा विधि का विधान है कोई महलो में है तो किसी को एक छत भी नसीब नहीं ...........शायद इसी ही नियति कहते है .........
                                                भारत में तकरीबन १३ मिलियन बेघर लोग है .देश के लगभग सभी प्रमुख शहरो में है .दिल्ली में भी इनकी संख्या काफी है .इतनी बड़ी सख्या में बेघर लोगो के होने कारण बहुत से है .............बरोजगारी ,निरक्षरता ,मानसिक बीमारिया ,घरेलू हिंसा एवं व्यापक स्तर पर गाँव से शहरो क़ी ओर रोजगार क़ी तलाश में पलायन प्रमुख कारण है .
                                           इनकी परेशानिया अनेको है इनमे अधिकाश आपको सडको पर भीख मांगते नजर आयेगे ......कई को नशा खोरी ने जकड़ रखा .आस पास के इलाकों में छोटी मोटी चोरिया और लोगो के पाकेट मारना जैसे कामो को भी ये बखूबी अंजाम देते है .....................
                                     लगभग साल भर खुली छत के नीचे रहने वाले इन लोगो में से कई को  भयंकर ठंड  मौत क़ी नीद सुला देती है ............अमूमन ये खुद को किसी जाति या समुदाय का नहीं मानते ...........मुश्किलें तब और बढ़ जाती है जब ये बेघर पुरुष न होकर स्त्री हो ........शायद इनकी परेशानियों को बताने क़ी कोई जरूरत नहीं है ............आप सभी अनुमान लगा सकते है ...........
                                             सरकार को इनके पुनर्वास पर ध्यान देने क़ी जरूरत है क्यूकि वो भी उसी लोकतंत्र का हिस्सा है जंहा हम रहते है ........वैसे सुप्रीमकोर्ट  समय समय राज्यों को कुछ आदेश अवश्य देती है लेकिन उनकी मुश्किलें बहुत है और अधिक ध्यान देने क़ी आवश्कता है .........
                किसी फिल्म का यह गाना उनके ऊपर कितना सटीक है ..................
                 मुशाफिर हो यारो न घर है न ठिकाना ,
                   बस चलते जाना चलते ही जाना है .

5 टिप्‍पणियां:

Dev ने कहा…

sachi se awget karya aapne .....yadi dekha jaye to hamre aas - paas hi aise log dekhne ko mil jaate hai ......lakin yaha ki sarkar mudde ko uthana to jaanti hai ...lakin mudde ko hal kerte kerte kai arsha beet jata hai .

Dinbandhu Vats ने कहा…

khane ki anna nahi
pahanane ko vastra nahi
rahane ko nahi makan
phir bhi mera bharat mahan

Unknown ने कहा…

Inke beghar hone ka sabse bada karan inki niskshrta hai, yah kah kar jaan nahi chhuda sakte balki ek majboot kadam udhane ki zarurat hai,hum se jo kuchh jo sake unki help karne me hume zarur karna chahiye ....badiya likha hai aur achhi soch hai.

VIKAS PANDEY
http://www.vicharokadarpan.blogspot.com/

shekhar ने कहा…

photo bahut hi acchi hai jivan ki sacchai se samaj kavitao ke madhyam se awagat to ho jati hai par neta adhikari in samsyao ko kagajo me hi nirakaran karana chate hai samasya akhair kaise hal hagi

Rakesh Kumar Singh ने कहा…

प्रज्ञा अच्‍छा विषय चुना है आपने. आपकी संवेदनाओं को सलाम. प्रज्ञा बहुत अच्‍छा होता अगर आप थोडा और विस्‍तार से लिखते. मैं बेघरी के मसले पर आठ दस पृष्‍ठों का एक मासिक बुलेटिन निकालता हूं. आपको आपत्ति न हो तो मैं आपकी इस पोस्‍ट को जरूरी संशोधनों के साथ उस बुलेटिन में शामिल करना चाहूंगा. आप अगर इससे मुताल्लिक कोई बात करना चाहें तो मेरा नं. है 9811 972872

एक बार फिर आपका शुक्रिया. यूं ही लिखते रहें.